Saturday 16 July 2011

वो है तभी तो मैं हूँ..
सर्व-विद्यमान है वो,
कभी किसी रूप में आ,
कभी कोई खेल दिखा,
वो कर देता है मुझे,
एकाएक विस्मित सा,
ना कैसे कर दूँ उसको,
या उसके अस्तित्व को,
जब वो सदैव रहता है,
मेरे इर्द-गिर्द, चहु ओर,
मेरी प्रत्येक क्रिया को,
वो निर्धारित करता है,
ताकि अँधेरे से मुक्त हो,
और ज्योति से युक्त हो,
मैं बना रहूँ एक इंसान,
मेरी माँ बनकर कभी,
कभी पिता के रूप में,
कभी प्रिये मित्र सा हो,
कभी मेरी नन्ही बेटी,
ना जाने किस किस ,
रूप को धरकर वो, सदा,
मुझे एक डगर पर चलाता,
और तुम कहते हो कि,
वो मेरा बंधू मेरा सखा,
ईश्वर है या फिर नहीं ,
====मन-वकील  

Monday 11 July 2011

कुछ पल में गुजर जायेगी , ना जाने कैसे ये जिंदगानी,
कुछ ख्वाब अधूरे होंगे, कुछ रह जायेगी अधूरी कहानी////
चंद साँसे जो चलती है अब भी मेरे सीने में धीरे अदनानी,
दूर जायेंगी वो भी एक दिन, छोड़ इस बदन की बहती रवानी///
कहीं दूर बसेरा हो शायद, रूहे-खाक का, ना जाने कहाँ ऐ-दिल,
बस देखते रह जायेंगे यार दोस्त, भर भर अपनी आँखों में पानी... ......
=====मन वकील
रात भर बैठ कर अब रोता है वो,
याद कर कर अपने बीते अतीत को,
कैसे सजते थे वहां उसके रौनक मेले,
लोग जलते थे देख कर,उसके नसीब को,
जब खुशियाँ मुड़ वापिस आती हर-पल,
ढूंढ़ने उसे या शायद चूमने उसकी दहलीज़ को,
वक्त का पहिया घूम घूम कर तेज़ भागता,
लौट कर आने को हो, खोजता किस तरतीब को,
वो हर शह को समझता था अपना गुलाम,
लुभाता था वो एक सा, अपनों को या रकीब को,
रातों के काले साए भी नो छू पाए , उसे कभी,
रौशनी के दौर चलते सदा, होकर उसके करीब को,
पर जैसे बदलते है यारों मौसम के भी हर दौर,
पड़ गए उसके नसीब के धागे भी कुछ कमज़ोर,
रातें भी आने लगी अब होकर स्याह उसके करीब,
टूट गए थे सब ख्वाब, रूठ गए सब उसके नसीब ./....
==मन वकील

Saturday 9 July 2011

सजाते रहना बस ये महफ़िलें ऐसे ही, न आने देना उन वीरानों को,
मुझ बस युहीं रुखसत कर देना चुपचाप, ना ढूँढना मेरे ठिकानों को ...
===मन-वकील
वो बैठा रहता है अब सड़कों पर, बिना रफ़्तार के यारों,
सुनाई भी नहीं देता उसे अब शोर आने जाने वालों का,
बहरा तो नहीं था वो पर अब ना जाने क्यूँ नहीं सुनता,
आँखें पथरा सी गई है देख हजूम आने जाने वालों का,
कोई तो शह सी होगी, जो रखे है उसे बांधें इन सड़कों से,
वर्ना कब लगता था उसे भला, रेला आने जाने वालों का
तकदीरों के फैसले उसे, ना जाने कहाँ से कहाँ ले जाए,
बस अब बनके रह गया वो,इक जोड़ आने जाने वालों का ....
---मन-वकील
वो बैठा रहता है अब सड़कों पर, बिना रफ़्तार के यारों,
सुनाई भी नहीं देता उसे अब शोर आने जाने वालों का,
 मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कभी हो जाते है कुछ धुंधले, कभी बस जाते अँधेरे,
कभी बह जाते है वो मेरी पलकों से संग आंसुओं के,
कभी बस पड़े रहते युहीं, रहकर नम से, ठहरे ठहरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कभी चेहरे नज़र आते है उनमे कभी परछाई से गहरे,
कभी एक ढलती रात से होते और कभी उजले से सवेरे,
कभी बस टूटने को होते, कभी बस आगोश में रहते मेरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे,
कहीं तो शोर करते है ये, कभी ख़ामोशी से करते बसेरे,
कभी पुकारते है मुझकों, दिखाकर यादों के फूल वो तेरे,
कभी मासूम से होते, कभी कुरेदते ये, वो जख्म भी मेरे,
मेरी पलकों के कोनों में छुपे है ख्वाब कुछ सुनहेरे, .....
====मन-वकील

Tuesday 5 July 2011

चंद सिक्कों में बिकती है यहाँ ईमान की हर शह यारों,
खरीददार है अब जितने, उतने ही बिकवाल यहाँ है अब //////
मत भौंक मेरे आगे , तू अब मुझको तो जाने भी दे,
कहीं तेरी इस आदत से, मैं भी भौंकना न शुरू कर दूँ
इस शहर की रातों में अन्धेरें में, अब उल्लू से भी उड़ते है ,
कुछ अनजान बने रहते है, कुछ बस अपनों से लड़ते है....
इन लूटे हुए शहरों की, यारों बस इतनी से कहानी है ,
सब टूटी हुई सड़के और नयी इमारतें हो गई पुरानी है