Thursday 19 September 2013

हमारा एपीजे सबसे न्यारा,


     नन्हे नन्हे क़दमों से चलकर, नन्हे पुष्प यहाँ है आते,
    शिक्षा की इस बगिया में आकर,दिव्य रंगों से सजाते,
    चिड़ियों के कलरव सा शोर,खुशियों का देता नज़ारा,
    हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,
    अध्यापक हमारे गुणीजन, गुरु शिष्य की चले परिपाटी,
    स्वस्थ बचपन को निखारे यहाँ खेल मैदान की माटी,
    उड़ते कपोत सा ऊँचा बनेगा, इकदिन भविष्य हमारा   
    हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,
    भवन नहीं ये केवल, है हमारे समाज का इक गुरुकुल,
    चहुमुखी शिक्षा का केंद्र,देता ज्ञान, ह्रदय रहता प्रफुल्ल,
    मेरे मित्रों का मिलना, हंसी ठिठोली का बहता फौव्वारा,
     हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,
     नतमस्तक होता मेरा मन उस दिव्य पुण्यात्मा के आगे,
    जिनकी इस परिकल्पना से हम नन्हो के भाग है जागे,
    नमन डॉ सत्या पाल जी को,जो देश का भविष्य संवारा,
     हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,

Sunday 15 September 2013


मैं ना सच्चा हूँ ना कभी रहा मैं झूठा,
तुझको चाहा, इसी बात पर तूने लूटा,
मेरी वफाओं को समझा क्यों तमाशा,
बेहिसाब मुहब्बत थी तुझसे बेतहाशा,
हम चले उस राह पे,जहाँ से तुम गुजरे,
दिल में बसाये थे पर चुराते तुम नजरें,
प्यार जो था मुझसे, फिर क्यूँ दिल टूटा,
तुझको चाहा, इसी बात पर तूने लूटा,
तेरे चेहरे पर रही बसती सिर्फ रुसवाई,
हम रहे संग तेरे हमेशा यूँ बन परछाई,
हमको हर महफ़िल भी लगी यूँ तन्हाई,
जरा कही कदम ठहरे,तेरी याद चली आई,
आँखों के दरिया से,आँसुओं का सैलाब फूटा,
तुझको चाहा, इसी बात पर तूने लूटा।।।
==मन वकील 

Thursday 12 September 2013

सच्चा प्रेम कहाँ होता है




वो लोग कहते है कि प्रेम होता है वासना से परे,
हमने देखा है प्रेम को वासना के सहारे यूँ खड़े,
मिलता नहीं इस दुनिया में कहीं भी ऐसा प्यार ,
तन के मिलन से बनते देखी रिश्तो की मीनार,
निश्चल प्रेम सिर्फ किताबों में लिखी हुई कहानी,
काम क्रीड़ा के बिना कहाँ राजा कहाँ होगी रानी,
तन की ज्वाला बुझे,तो प्रेयसी निहारती है राह,
वरना कैसा इंतज़ार पिया का, और कैसी चाह,
क्यों बोले झूठ मन वकील,कहाँ मिलता ऐसा प्रेम,
यहाँ औरत मर्द के रिश्तों में होए सेक्स बड़ा नेम ...
...............मन वकील

Wednesday 11 September 2013


लोग युहीं हम पर शक किया करते,
हम ना कातिल है ना कोई दहशतगर्द,
चेहरे पढ़ लेते है शायद,किसी हद तक,
रूहानियत से हमारी होता क्यूँ उन्हें दर्द,
पहचान हमारी अब खुद में ही सिमटती,
लानतें करने लगी मेरे गर्म लहू को सर्द,
हमसे ना मिल ऐ दोस्त, जो हो कोई डर,
हम भी घर में रहते नहीं कोई आवारागर्द।।
==मन वकील  

Wednesday 4 September 2013

मेहमान है जवानी


अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,
सफ़ेद बालों को हटाने के लिए अपनी खाल छील डालता है,

उम्रदराज होने का खौफ, ऊपर से परेशानियां कम नहीं होती 
उसके चेहरे की झुरियाँ कमबख्त फिर भी कम नही होती,
ना जाने कैसे कैसे से केमिकल चेहरे पर वो यूँ डालता है,
अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,

जब भी निकलता है चाहे भरे बाज़ार या किसी भी राह पर,
हसरतें खूबसूरती को देखें,लगाम ना पडती उसकी चाह पर,
अंकल अंकल की पुकार अनसुनी कर,रंगी जुल्फे संवारता है,
अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,

कमबख्त दिल है उसका, जो अब भी बन्दर सा यूँ उछलता,
खिज़ाब से रंगे मूँछे ,संग में सिर के बालो पर कालिख मलता,
सफ़ेद होती भौंवो पर भी, अब वो कैंची से यूँ धार सी डालता है, 
अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,