Tuesday 29 November 2011

धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,
सरकती और सिमटती कभी उस धूप को होते छाँव देखा,
उजालों से घिर घिर के आये, कभी स्याह अँधेरे ऐसे भी,
साँसों को बिलखकर रोते, मौत से मिलते दबे पाँव देखा,
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,
उम्मीदों के घरोंदें होते है बस, कुछ रेत से भी कमज़ोर,
आंसू मेरे बहा दे इन्हें ऐसे, टूटते इन्हें बस सुबह शाम देखा,
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,
जहाँ ढूंढते रहते है हम, उनके पैरों के वो गहरे निशान,
उस दलदल को सूखते हुए,बदलते दरारों के दरमियाँ देखा,
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा,
कभी तो पूछ मुझसे यूँ तू,मेरे ऐसे बिखरने का वो आलम,
क्या बीती मुझ पर जब, पड़ते उलटे जिन्दगी के दाँव देखा,
धरातल से उठाकर हमने, कभी जो ऐसे अपने पांव देखा, 





Wednesday 9 November 2011

बिदेस गए प्रिये तुम, अब मोहू कैसो शरद
बांस फांस चुभन लगो, तन में जियो सो दर्द,
सीतल पवन नाही सुहाहे,छुवत रहे तस गाल,
स्याह हुई रतिया,धीमी तासु दुनी एहू चाल,
खग भी न करते, मौसे बतिया भूले कलरव,
नैनन अब बौर लगे, थके राह तकते जब-तव,
सेज लगे मोहे भरी, काँटों सो बिछी एक चादर,
परछाई मोहे भय करै,पीछे ध्वनित जो सरसर,
लौट आओ अब पिया, काहे खोज़त मुद्रा स्वर्ण,
जोबन बीतो तिस रोवत,बैरागी भयो अब मन ....
===मन वकील

Sunday 6 November 2011

मेरे सफ़ेद कपडे पे उछालता है क्यूँ ये कीचड़ ,
गर तुझे है अपनी पोशाक मैली होने का डर,
मैं अगर हूँ बुत-परस्त, तू भी ढूंढता है खुदा,
अज़ान या आरती,एक मंजिल पर राहें जुदा,
बात बस इतनी है जो मन-वकील सबसे कहे,
मान चाहे कैसे भी पर इंसानियत से दूर क्यों रहे

Wednesday 2 November 2011

मन में भरा बहुते विषाद,
करत रहो एहो बहु विवाद,
नेत्र सूखे अब अश्रु जो नाही,
केहू करे बखान अब जाही,
लेखन मोहे दिए इक धार,
झरत भाव इन शब्द भियार....
==मन-वकील 

महाज्ञानी महापंडित सबै देखे, हम जल भरते ऐसे,
भाग्य सो बड़ो नाही कोई,पछाड़ दियो जो सबहु जैसे,
जो होए सबल तो मिल जाए,माटी भीतर भी सोना,
जो होए धूमिल तो हाथ कमायो भी सबहु हो खोना,
अंधे जैसो दिखत नहीं कबहू, राह पड़ी वो सबरी मुहरे,
भाग्य बदा मिलतो सबहु चाहे कछु जतन कोऊ जुहरे,
कागा खाता रहे पकवान, हंस चलत बस भूख बिधान,
कूकर चाटे रस मलाई, और गैय्या सांगे कूड़े बहुबान,
देख मन-वकील एहो भाग्य की जस तस भाँती-२ खेल,
पाखंडी चड़त रहीं अब सिंहासन,भलो जावत रहे जेल ....
==मन-वकील