Monday 3 February 2014

कभी जुबान नहीं खुलती, कही बंद नही होती ये जुबान,
खाता रहता है लानतें वो, मान कर दुनिया का अहसान,
सीखे कैसे वो वक्त की पाबन्दी,तोलकर शब्दों को पिरोना,
बेइन्तेहा बेवजह जुबान खोलकर बन गया वो खिलौना,
लोगों की आँखों में नफ़रत, वो बना फिरता यूँ अनजान,
कभी जुबान नहीं खुलती, कही बंद नही होती ये जुबान,

Sunday 2 February 2014

उत्तर भारतीय दिल्ली निवासियों द्वारा अपने पूर्वोत्तर भारतीय बेटे की निर्मम हत्या पर आक्रोश सहित

" उत्तर भारतीय दिल्ली निवासियों द्वारा अपने पूर्वोत्तर भारतीय बेटे की निर्मम हत्या पर आक्रोश सहित "

मुझे मेरा बेटा अब वापिस लौटा दो,
ए दिल्ली मुझे भी अब यहाँ जगह दो,
नहीं मैं कोई विदेशी, हूँ खालिस देसी,
उत्तर पूरब का हूँ , तेरा जैसा हूँ देसी,
मेरे नाम से चीनी चिंकी यूँ मिटा दो
मुझे मेरा बेटा अब वापिस लौटा दो,
ए दिल्ली मुझे भी अब यहाँ जगह दो,

यदि नहीं दे सकते मेरे बच्चों को जो तुम घर,
क्यों डालते मेरी बेटी पर तुम वो बुरी सी नज़र,
क्या अभी तक है तुममे वो गुलामी का असर,
मुझे भी वो सम्मान मेरा हक़ यहाँ पर दिला दो
मुझे मेरा बेटा अब वापिस लौटा दो,
ए दिल्ली मुझे भी अब यहाँ जगह दो,

घर से दूर भेजा था मैंने उसे यहाँ पढ़ने संवरने,
कुछ सपने थे देखे जिनमे रंग अभी मुझे थे भरने,
उपहास या परिहास की वस्तु नहीं भेजी मैंने मरने,
मेरा अंश था वो मेरे जिगर का टुकड़ा लौटा दो
मुझे मेरा बेटा अब वापिस लौटा दो,
ए दिल्ली मुझे भी अब यहाँ जगह दो,