धरातल से ऊपर मेरे पाँव है,
कहीं छुप गया वो मेरा गाँव है,
कभी बादलों से घिरा रहता था,
कभी हवाओं का जोर सहता था,
पेड़ों की डालियों पर थे पत्ते हरे,
खेत थे खलियान भी थे सब भरे,
लोगों की महफ़िल थी शोर था,
खुश थे सब ना कोई कमज़ोर था,
वजह थी वहीँ न बेवजह था कोई,
रातें थी चांदनी पर,रहती वो सोई,
कहाँ सब जा बसे अब कहाँ गाँव है
कहीं छुप गया वो मेरा गाँव है,
राह थी चलती, जो लोग चलते,
वहीँ जानवर दोस्तों से थे पलते,
सब नज़दीक था मंदिर भी वहीँ,
पाठशाला की घंटी से हिलती जमीं,
बच्चे थे संग थे खेल कंचे और हाकी,
सभी एक से एक, ना कमी थी बाकी,
बस एक दिन कोई धुंआ आ गया,
मेरे गाँव के सब खेत ही वो खा गया,
अब बस दौड़ते है मजबूरी के पाँव
कहीं गुम हो गया वो मेरा गाँव,
==मन-वकील