सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
भूख से बिलखती है इस देश की वो दुखी जनता गरीब ,
अनाज पड़ा सड़ता है,गरीबी नाचती यहाँ बनके नसीब,
अब खेत कहाँ है बचे, दिखे बस यहाँ वहाँ कंक्रीट का ढेर,
सब्जी तरकारी भी अब मंडी में बिकती है सौ रूपये सेर,
अब खून क्या, अमीरों की बहुओं के लिए वीर्य बिकता है
सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
परियोजनाओं पर क्या हो खर्च, खर्च करते जो सरकारी अफसर,
हर साल नई नई गाडियों के संग मिलता, चमचों का बड़ा लश्कर,
नित बहे जाए गरीबों के हित में,सरकारी खजाने के काली सरिता,
सब बांटे जाये नेता और बाबू,गरीबों की उम्मीदों को लगे पलीता,
अब स्कूलों की बिल्डिंग फंड से, नेताजी का घर महल सा दिखता है ,
सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
ईमानदारों जो थे बाबू अफसर वो कर दिए बेवजह ही मुअत्तिल,
जो कुछ बचे है सरकारी दफ्तरों में, वो झेलते हर कदम पर मुश्किल
उन चमचों और चापलूसों को बांटते जाए वो पदम् श्री और पदम् भूषण,
जो गरीबों के नाम से बना एनजीओ,सरकारी अनुदान से खरीदे आभूषण,
अब यहाँ गरीबी के नाम पर, नेताओं का मगरमच्छी आंसू भी बिकता है,
सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
==मन वकील
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
भूख से बिलखती है इस देश की वो दुखी जनता गरीब ,
अनाज पड़ा सड़ता है,गरीबी नाचती यहाँ बनके नसीब,
अब खेत कहाँ है बचे, दिखे बस यहाँ वहाँ कंक्रीट का ढेर,
सब्जी तरकारी भी अब मंडी में बिकती है सौ रूपये सेर,
अब खून क्या, अमीरों की बहुओं के लिए वीर्य बिकता है
सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
परियोजनाओं पर क्या हो खर्च, खर्च करते जो सरकारी अफसर,
हर साल नई नई गाडियों के संग मिलता, चमचों का बड़ा लश्कर,
नित बहे जाए गरीबों के हित में,सरकारी खजाने के काली सरिता,
सब बांटे जाये नेता और बाबू,गरीबों की उम्मीदों को लगे पलीता,
अब स्कूलों की बिल्डिंग फंड से, नेताजी का घर महल सा दिखता है ,
सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
ईमानदारों जो थे बाबू अफसर वो कर दिए बेवजह ही मुअत्तिल,
जो कुछ बचे है सरकारी दफ्तरों में, वो झेलते हर कदम पर मुश्किल
उन चमचों और चापलूसों को बांटते जाए वो पदम् श्री और पदम् भूषण,
जो गरीबों के नाम से बना एनजीओ,सरकारी अनुदान से खरीदे आभूषण,
अब यहाँ गरीबी के नाम पर, नेताओं का मगरमच्छी आंसू भी बिकता है,
सावन के अंधों के जैसे चहु ओर सब हरा ही दिखता है,
सरकारी औंधों बाबुओं नेताओं को सब मंदा ही दिखता है,
==मन वकील