Thursday 19 September 2013

हमारा एपीजे सबसे न्यारा,


     नन्हे नन्हे क़दमों से चलकर, नन्हे पुष्प यहाँ है आते,
    शिक्षा की इस बगिया में आकर,दिव्य रंगों से सजाते,
    चिड़ियों के कलरव सा शोर,खुशियों का देता नज़ारा,
    हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,
    अध्यापक हमारे गुणीजन, गुरु शिष्य की चले परिपाटी,
    स्वस्थ बचपन को निखारे यहाँ खेल मैदान की माटी,
    उड़ते कपोत सा ऊँचा बनेगा, इकदिन भविष्य हमारा   
    हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,
    भवन नहीं ये केवल, है हमारे समाज का इक गुरुकुल,
    चहुमुखी शिक्षा का केंद्र,देता ज्ञान, ह्रदय रहता प्रफुल्ल,
    मेरे मित्रों का मिलना, हंसी ठिठोली का बहता फौव्वारा,
     हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,
     नतमस्तक होता मेरा मन उस दिव्य पुण्यात्मा के आगे,
    जिनकी इस परिकल्पना से हम नन्हो के भाग है जागे,
    नमन डॉ सत्या पाल जी को,जो देश का भविष्य संवारा,
     हम नन्हों को भाये हमेशा हमारा एपीजे सबसे न्यारा,

Sunday 15 September 2013


मैं ना सच्चा हूँ ना कभी रहा मैं झूठा,
तुझको चाहा, इसी बात पर तूने लूटा,
मेरी वफाओं को समझा क्यों तमाशा,
बेहिसाब मुहब्बत थी तुझसे बेतहाशा,
हम चले उस राह पे,जहाँ से तुम गुजरे,
दिल में बसाये थे पर चुराते तुम नजरें,
प्यार जो था मुझसे, फिर क्यूँ दिल टूटा,
तुझको चाहा, इसी बात पर तूने लूटा,
तेरे चेहरे पर रही बसती सिर्फ रुसवाई,
हम रहे संग तेरे हमेशा यूँ बन परछाई,
हमको हर महफ़िल भी लगी यूँ तन्हाई,
जरा कही कदम ठहरे,तेरी याद चली आई,
आँखों के दरिया से,आँसुओं का सैलाब फूटा,
तुझको चाहा, इसी बात पर तूने लूटा।।।
==मन वकील 

Thursday 12 September 2013

सच्चा प्रेम कहाँ होता है




वो लोग कहते है कि प्रेम होता है वासना से परे,
हमने देखा है प्रेम को वासना के सहारे यूँ खड़े,
मिलता नहीं इस दुनिया में कहीं भी ऐसा प्यार ,
तन के मिलन से बनते देखी रिश्तो की मीनार,
निश्चल प्रेम सिर्फ किताबों में लिखी हुई कहानी,
काम क्रीड़ा के बिना कहाँ राजा कहाँ होगी रानी,
तन की ज्वाला बुझे,तो प्रेयसी निहारती है राह,
वरना कैसा इंतज़ार पिया का, और कैसी चाह,
क्यों बोले झूठ मन वकील,कहाँ मिलता ऐसा प्रेम,
यहाँ औरत मर्द के रिश्तों में होए सेक्स बड़ा नेम ...
...............मन वकील

Wednesday 11 September 2013


लोग युहीं हम पर शक किया करते,
हम ना कातिल है ना कोई दहशतगर्द,
चेहरे पढ़ लेते है शायद,किसी हद तक,
रूहानियत से हमारी होता क्यूँ उन्हें दर्द,
पहचान हमारी अब खुद में ही सिमटती,
लानतें करने लगी मेरे गर्म लहू को सर्द,
हमसे ना मिल ऐ दोस्त, जो हो कोई डर,
हम भी घर में रहते नहीं कोई आवारागर्द।।
==मन वकील  

Wednesday 4 September 2013

मेहमान है जवानी


अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,
सफ़ेद बालों को हटाने के लिए अपनी खाल छील डालता है,

उम्रदराज होने का खौफ, ऊपर से परेशानियां कम नहीं होती 
उसके चेहरे की झुरियाँ कमबख्त फिर भी कम नही होती,
ना जाने कैसे कैसे से केमिकल चेहरे पर वो यूँ डालता है,
अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,

जब भी निकलता है चाहे भरे बाज़ार या किसी भी राह पर,
हसरतें खूबसूरती को देखें,लगाम ना पडती उसकी चाह पर,
अंकल अंकल की पुकार अनसुनी कर,रंगी जुल्फे संवारता है,
अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,

कमबख्त दिल है उसका, जो अब भी बन्दर सा यूँ उछलता,
खिज़ाब से रंगे मूँछे ,संग में सिर के बालो पर कालिख मलता,
सफ़ेद होती भौंवो पर भी, अब वो कैंची से यूँ धार सी डालता है, 
अपने बुढ़ापे को छुपाने का वो अज़ब ही तोड़ निकालता है,

Wednesday 28 August 2013

मन वकील हूँ पागल



रिश्तों के वो कच्चे पक्के धागे मैं युहीं तोड़ता हूँ,
कई कई बार यूँ मैं खुद को खुद से ही झंझोड़ता हूँ,
     फलसफ़ा नहीं है जिन्दगी,पर फलसफे से ना कम,
     खुशियाँ फिसल जाए हाथों से, दे जाती कितने गम,
     अफ़सोस का भी वक्त नहीं देती,सिमट जाये पल में,
     कभी अकेली खड़ी होती,कभी रपट जाती हलचल में,
     जिन्दगी के लिखे पन्ने मैं, अपने हाथों से मोड़ता हूँ,
     रिश्तों के वो कच्चे पक्के धागे मैं युहीं तोड़ता हूँ,
     कई कई बार यूँ मैं खुद को खुद से ही झंझोड़ता हूँ, 
मुझसे यूँ परे रहते वो अब,जो कभी मुझको थे चाहते,
मेरी बात पर देते जो दाद, उन्हें हम अब ना है सुहाते,
जिनकी आखें मेरे दीदार की थी प्यासी, वो थे मुरीद,
बेवक्त मुझसे बतियाते थे वो, दिल से निकलती दीद,
सपनों में अब भी मेरे, मैं वो नाते उनसे यूँही जोड़ता हूँ  
रिश्तों के वो कच्चे पक्के धागे मैं युहीं तोड़ता हूँ,
कई कई बार यूँ मैं खुद को खुद से ही झंझोड़ता हूँ,  
   खुद को कहते है वो इन्सान, पर इन्सिनियत कहाँ उनमे,
   जानवर को भी करे शर्मिंदा,इतनी जलालत जो भरी उनमे,
   मचाये रहते वो लूट खसोट, चोरो बेईमानों का है यहाँ जोर,
   मन वकील हूँ ईमानदार,जमाने के चलन में पागल कमज़ोर, 
   अब लेकर हाथों में अपने पत्थर,उन चोरो का स़िर फोड़ता हूँ,
   रिश्तों के वो कच्चे पक्के धागे मैं युहीं तोड़ता हूँ,
   कई कई बार यूँ मैं खुद को खुद से ही झंझोड़ता हूँ,
====मन वकील 

Saturday 24 August 2013

काहे कहे मन तोहे बैरी, जो मन निज ही बेगाना,
प्रेम सुख दियो तू मोहे,कियो अवसाद को निदाना,
मूरख होय रहो मन, निज नार तुल्य सो पहचाना,
अंतरजाल कियो मोहे भ्रमित,बुद्धि होय अवसाना,
क्षमा देयो मोहे तुम प्रिये,कटु बोल मैं तोहे बखाना,
मन वकील काहे बने अधीरा,जो बांटे परजन ज्ञाना,

अनोखी सी इक चीज़



रब ने अनोखी सी इक चीज़ मेरी तकदीर बनाई,
शक्ल पे तो लिखी अमीरी, जेब यूँ फ़क़ीर बनाई,
लुटाता रहा दौलत यूँ मैं मोहब्बत की बेपरवाह हो,
अपने खुद के हिस्से में बस रखी हमेशा वो तन्हाई,
कोई आकर कहता जो कभी,तुम हो मेरे मन वकील,
मैं दीवाना हो नाचता फिरता, तमाशा बन जगहँसाई,
टूटता फिर जो भरम,पैरों तले खिसक जाए वो जमीं,
कुछ देर ठहर खुद में, टटोलता फिरता तेरी परछाई,
रब ने अनोखी सी इक चीज़ मेरी तकदीर बनाई,
== मन वकील      

मेहरबानियाँ जो तेरी,


मेहरबानियाँ जो तेरी, तू रुक कर बात कर लेता मुझसे,
वरना अकेले ही खड़े हम,जिसको रुस्वाइयाँ भी ना छूती,
चंद साल बकाया हो शायद,मेरी रुख्सती को इस दुनिया से,
झेलता यूँ हर सितम चुपचाप,कोई शह मुझसे नहीं अछूती,
मेरी ख़ामोशी को ना समझ, तू मेरी कोई रूहानी कमज़ोरी,
मैं सख्त हूँ बेसख्ता भी शायद, चाहे हो किस्मत मेरी रूठी,
खुद को खुद से समझता मैं, हूँ किसी चाहत से चाहे महरूम,
कुछ तो हूँ अलग जमाने से, शायद मेरी दीवानगी ही अनूठी,
तभी अक्सर तू खिंचा चला आता,बेवक्त यूँ मेरे पास बेबात,
रोशनी ना हो चाहे कोई,अँधेरों की कालिख मुझसे ना छूटी, 
मेहरबानियाँ जो तेरी, तू रुक कर बात कर लेता मुझसे,
वरना अकेले ही खड़े हम,जिसको रुस्वाइयाँ भी ना छूती,
==मन वकील

Friday 23 August 2013

अक्सर


वो चंद सवाल रह रह कर उठते मेरे मन में ,
क्या खोजता फिरता हूँ मैं, यहाँ वहां अक्सर,
किससे करता मैं, क्यूँकर करता मैं उम्मीद,
जब तन्हाई ही आन बसती मेरे भीतर अक्सर,
तमाशबीन है संग संगदिल लोग मिलते मुझे,
मैं खिलौना हाथों में उनके टूट जाता अक्सर,
जब भी चाहो आकर खेलो मेरे अरमानों से,
आखिर ख्वाब देखते नादाँ तुम्हारे यूँ अक्सर,
मत पूछ क्यों नहीं रोता मैं तेरे सामने ऐसे,
आँखों की झील सूख जाती यूँ मेरी अक्सर,
तू मत जा मेरे रुसवा चेहरे की शिकन पर,
कमबख्त शक्ल बना लेता ये रोंदी अक्सर ...
==मन वकील
   

Wednesday 21 August 2013

प्रेम राग




खट्टी मीठी नोकझोंक, करे प्रेम गाढ़ा,
पिया बने कम्बल, आये जब भी जाड़ा,
आये ज्यो जाड़ा, पिया करते मनुहार,
ग्रीष्म आये चाहे,घटे ना घट घट प्यार,
बूंद बूंद बरसे सावन,प्रेम पिया बरसाय,
ऋतु चाहे परिवर्तित,मोह बढ़ता ही जाय,
मोह बढ़ता जैसे,पिया दिखलाय अनुराग,
प्रेयसी सह पिया गंधर्व सो गावे प्रेम राग,

Tuesday 20 August 2013

सरकारी कवि


एक भूखे भेड़िये सा जो डिनर पर टूट पड़े 
वो कवि नहीं मित्र, सरकारी कवि कहलाय,
जो केवल प्याली चाय से ना हो व्यवस्थित,  
सुर से परे केवल निज मन सुरा से रिझाय,
जो नवरचनाकारों के ज्ञान को करे निजघोषित 
उनमे बसे छंदों के निज उत्पादित कह सुनाय 
सरकारी पुस्तकों में जाकर बसे काव्य बन,
सत्ताधारी की चापलूसी कर अलंकृत,हो जाये 
मन-वकील मूर्ख भला करता फिर तुकबंदी,
काहे उधेड़बुन करे व्यर्थ, क्यों कवि कहलाय ...
==मन वकील


संदिली बदन से तेरे वो रिसती है रस के बूंदे,
मैं मदमस्त हो जाता किसी भौरांये गज सा,
यौवन करता तेरा आनंदित मुझे हे वैभवी,
तू मेरी प्रेयसी तू मेरी मधुरिमा मैं हूँ रज़ सा

काम  रस भरे तेरे दोहु नैना हिरनी से कजरारे,
मैं मूक कैसे होता भला जो तेरे होंठ करे इशारे 
तू बसी मेरे जीवन में जो नभ में बसे वो तारे,
तू है धरा सी प्यासी, मैं देता रस की वो फुहारें
तू कहती है मुझे उष्मित मैं रहा करूँ सहज सा 
तू मेरी प्रेयसी तू मेरी मधुरिमा मैं हूँ रज़ सा

Saturday 27 July 2013


प्रेम ना जाने नियम की बाटी, प्रेम उन्मुक्त भावों की घाटी,
प्रेम माँ का बालक से अनुराग, प्रेम अपनों के लिए त्याग,
प्रेम चतुर छले पलपल मोहे,प्रेम बसे ग्रंथो में कबीर के दोहे,
प्रेम माया जाल कभी तीर साचा,प्रेम खटास ज्यो फ़ल काचा,
प्रेम होय मैं नभ में उडता खग,प्रेम संयम बुरे ना होय जग,
प्रेम बने प्रेरणा करूँ निज सुधार,जो होय वासना तो दूँ विसार ....
==मन वकील  

Thursday 25 July 2013

एक फैसला आज हुआ,शहीदी भारत की इस खूनी माटी पर,
शहीद महेश शर्मा गया होगा आज स्वर्ग की अमर घाटी पर
दहशतगर्दों के मसीहा अब नजर मिला,कहाँ छुपाता अब मुहँ,
तब तेरी अम्मा भी घडियाली थी रोती, साथ में रोता था जो तू,
वोट बैंक की भूख में करता रहा, बस आतंकियों की पैरवी तू,
उनके तलवे चाटे जाए, जैसे कागा खाता रहे सड़क में पड़ा गूं,
भूल गया तू भारत माँ को,बेच रहा पल पल सडा हुआ जमीर,
तेरे माई बाप की गलतियों से, खो बैठे है हम अपना कश्मीर,
"हिन्दू" शब्द को तू मानता गाली, सुधर जा अब तो ऐ जयचंद,
कब तक जजिया भरेगी जनता, देश हो जाएगा ऐसे खंड खंड,
अब लगता तुझे सबक सिखाने, तेल लगाना होगा अपनी लाठी पर   
 एक फैसला आज हुआ,शहीदी भारत की इस खूनी माटी पर,
शहीद महेश शर्मा गया होगा आज स्वर्ग की अमर घाटी पर ....
---मन वकील 

Sunday 21 July 2013

वो रखता है अपने ज़मीर को अब जेब में अक्सर,
मौके पर कभी कभार निकाल देख लेता उसका हाल,
दिल से दूर कर दिया जो ज़मीर को यूँ उसने अपने,
बस भरता है अब तिजोरी, हो गया जो वो मालामाल 
चंद दाग जो मेरी शख्सियत पर है उभरे,
वो मेरे आज को करते रहते यूँ दागदार,
मैं अनजान बना रहता खुद से ही अक्सर,
मेरा साया ही बन बैठा अब मेरा राज़दार 

Wednesday 17 July 2013



कहे क्या किस से मन वकील, अब हर ओर ही है बंदिशें,
कभी अल्फाज़  है फिसलते, कही खड़ी हो जाती है रंजिशें,
दोस्त कहे भी तो कहे किसको,हर कहीं है रूठने का डर,
कोई छीन ले मेरी जुबाँ,यूँ फिसल जाती कमबख्त  अक्सर 
==मन वकील 

Wednesday 10 July 2013


गौरी तोहे भाये सबहु रास रंग, 
काहे करहु तू पीया अपने तंग,
कबहु लगाये माथे पहु बिंदिया,
देख-२ उडत वाको मुई निंदिया,
मुग्ध करे नित निज "सुनील" 
नैनं कजरारे लगे ज्यो छबील,
गजगामिनी मोहिनी जैसे सुधा,
बसे अंक सुनील, जो ब्रह्म वसुधा 

Saturday 6 July 2013

कचहरी

कचहरी के दर पर आकर हुआ मुझे ये मालूम,
लोग किस कदर घर में फ़साद किया है करते,
उसको रुलाते है कटघरे में,पल पल देकर ताना,
अब रंजिशे रखे है उससे, जिसपे वो कभी है मरते ....
==मन वकील 

Monday 1 July 2013

बचपन

बचपन की बातें, वो स्कूल में की हुई बातें,
मास्टरजी की डांट, छिपाछिपी की वो रातें,
प्लेग्राउंड में बैठ वो दोस्तों के साथ किये लंच,
वो क्लास में बिछे डेस्क,ऑडिटोरियम में मंच,
तुनक में हम यूँ रूठें, कभी बेलगाम यूँ हँसना,
कभी शरारतों में उलझे,वो पनिशमेंट में फंसना,
माँ का वो लाड ऐसा, कभी माँ की मीठी झिडकी,
कभी बंद हुए यूँ दरवाज़े, कभी खुली कोई खिड़की,
अभी सब पास मेरे था, ना जाने अब कहाँ खो गया,
चन्द रातें क्या बीती,बस मेरा बचपन कहीं खो गया ..
==मन वकील 
 
  

Saturday 15 June 2013

माँ से नहीं है ख़ास वो,
पर माँ जितना वो ख़ास,
जीवन का सृजनकर्ता वो,
संचरित हुई उससे श्वास, 
चेहरे पर मुस्कान लेकर,
स्वयं दायित्व का अहसास,
नमन करूँ पिता को अपने,
तरुछाया सा,वो है मेरा प्रभास  ...
==मन वकील के मन की आवाज़ 


वक्त की आहट में, हम खुद को ही खोजते रहे,
कब मिलेगी खुद से खुद को राह,ये सोचते रहे,
कुछ रंजिशे थी, कुछ था उनका वो बेबाकपन,
कभी मुहँ छुपाये रहे,कभी दिखाते अपना फन,
उनके दिये हर जख्म को,यूँ खुद को कुरेदते रहे,
वक्त की आहट में, हम खुद को ही खोजते रहे,
तन्हाइयों की मत पूछ मुझसे,वो सरमाया मेरा,
उनमे बसकर अक्सर,देखा करते यूँ साया तेरा,
मालूम था हमे,तुम ना आ पाओगे कभी मुझ तक,
घर का मेरा पता भी,तुम भुला चुके होगे अब तक,
फिर ना जाने क्यों,नजरो से राह यूँ टटोलते रहे,
वक्त की आहट में, हम खुद को ही खोजते रहे,
==मन वकील के मन की आवाज़ 

Friday 31 May 2013


हर आदमी ही आया इस जहाँ में बस अकेला,
कितने अकेले जो मिले, लग गया इक मेला,
कोई चले धीरे-धीरे,कोई चलता तेज़ अविराम,
कोई पहुंचे मंजिल तक,कोई करे राह में विश्राम,
अनजानी डगर सभी की,अनजाने ही आते दौर, 
सूने सूने रास्ते सूने मन,हमराही ना कोई और,
तेज़ पड़ती धूप मुझपर,व्याकुल होती मेरी काया,
ना कोई मेरे साथ चलता, साथ चले मेरा ही साया ===मन वकील 

Sunday 5 May 2013


एक मित्र हमारे बोले, इक दिन हमसे यूँ आकर,
कोई फायदा नहीं मिला हमें,अंग्रेजी स्कूल जाकर,
ना हुआ इज़ाफा अंग्रेजी में,रहा मेरा हाथ युहीं तंग,
खूब किताबे चाट गये,अंग्रेजी व्याकरण से लड़ी जंग, 
कैसे बोलते अंग्रेजी फटाफट,मन वकील बतलाओ?
कैसे रोब डाले कान्वेंट वाली बीबी पर,हमें समझाओ ,
मन वकील हम बोले, मित्र बतलाऊं तुमे समझाए,
झटपट अंग्रेजी बोलने लगोगे,जो करोगे यह उपाय, 
रोज़ घर जाने से पहले, चढ़ा लो विस्की का इक पव्वा,
दस मिनट में गिटपिट शुरू, ना  रहे अंग्रेजी का हव्वा,
===मन वकील 

Friday 3 May 2013

कभी झूठ बोलना भी सीख लिया करो ,ऐ दोस्त,
हर काम सच्चाई से नहीं होता अब मेरे वतन में,
काले काम वालों ने घेर रखी है संसद में कुर्सियाँ,
टेंडर बिन कमाई के नहीं होता अब मेरे वतन में,
ना जाने और कितने और धोखें करेगा वो पडोसी,
अब फैसला सीधाई से नहीं होता है मेरे वतन में,
ऐ चीन घेर ले जितनी भी जमीन,तू यहाँ चाहेगा,
फौजी जोर कड़ाई से नहीं होता अब मेरे वतन में,
==मन वकील .... 

Thursday 2 May 2013

                           " शहीद "
           वो रोज़ मरता था , उस जेल की कोठरी में,
           हर रोज़ बिना नाग़ा, पल पल घुट घुट कर,
           इस देश के लिए अपनी जवानी लुटाते हुए,
           कभी पीटा जाता बेवजह,कभी बेकारण ही,
           सहता वो चुपचाप, मन पर जिस्म पर सब,
           रोज़ इक नया नश्तर,नए घाव छोड़ जाता, 
           अब तो आँसू भी सूख गये थे उन आँखों में,
           जिनमे कभी बसती थी रिहाई की उम्मीद,
           कौन करवाता उसकी रिहाई? क्यों? कब? 
           जब उसके वतन ने ही भुला जो दिया उसे,
           अहसान फ़रामोश मंत्री,संग बहरी सरकार,
           अपनों को रुलाने में,जो गैरों को मनाने में,
           अपना फर्ज़ भुला बैठी वो बैगैरत सरकार,
           इक दिन ऐसा आ ही गया,जब वो शख्स, 
           खूब पिटा, बिल़ा वजह पिटा, उस जेल में,
           हड्डियां टूटी, अंग बे-अंग हो गये नीले से,
           फिर कितने दिन और लड़ता वो जुल्म से,
           बस मौत की परी ले गयी अपने साथ उसे,
           सब दर्द सब जुल्मों से परे,अपने साथ उसे,
           फिर जागी वो बैगैरत सरकार नींद से ऐसे,
           आननफानन में दे दिया तमगा "शहीद" का,
           उस सच्चे शहीद की जख्मों से भरी लाश को ...
          ==मन वकील

Sunday 28 April 2013

                 गूंगा अब बेशर्म बन गया है।

  कई साल पहले, एक बड़े देश के सिंहासन पर,
  बैठा दिया नेताओं की जुन्डली ने ऐसे मिलकर,
  इक गूंगे को, कुछ जुगत भिड़ा, कुछ सोचकर,
  जो बस मुहँ ना खोले, चुप रहे वो सब देखकर,
              गूंगे के होते घोटालों का ऐसा अनोखा दौर चला,
              देश में यहाँ वहाँ बस भ्रष्टाचार का ही जोर चला,
              किसी मद में,कही भी,हर राह पर नेता ही फला,
              सरकारी खातों की छाया में,नेता का ही पेट पला,
कभी कोयला खाया, कभी खेलों के नाम पर खाया,
कहीं हेलिकोप्टर मंगाए, कही छाई टूजी की माया,
मनरेगा की लूटी फसल,जो नेताजी ने खूब कमाया,
भारत निर्माण के नाम पर, देश में अँधेरा ही फैलाया,
             सीमा पर जवानों के सिर कटे,खून से भारत सन गया,
             नारी पर हुई हिंसा,आक्रोश प्रदर्शन में सर्व जन गया,
             आ बैठा चीन भारत में, अब लद्दाख में तम्बू तन गया,
             और वो जो गूंगा है नेता गद्दी पर, अब बेशर्म बन गया ............
==मन वकील 

Thursday 25 April 2013

धरा हरी हरी सी, फैले हो चारों ओर वन,
रहेंगे सभी जन स्वस्थ,हसंता रहेगा मन,
ना होगा पर्यावरण दूषित,ना दूषित वायु,
सभी जन हो चिरंजीव, कम ना हो आयु,
बच्चें खेले कूदे,बलवान बने उनका तन,  
धरा हरी हरी सी, फैले हो चारों ओर वन,
चिड़ियों का कलरव,तितलियाँ करे निरत,
आनंदित होय नभ,मरू भूमि होय विरत,
परबत से बहे नदियाँ,ध्वनि करें कल-कल,
कोई खेत ना हो बंजर,कृषक ना हो विकल,
पर्व रंगों के हो इत उत,प्रमोद करे सर्वजन,
धरा हरी हरी सी, फैले हो चारों ओर वन,
==मन वकील   

Sunday 21 April 2013

                

                                 " माँ "


         कोई कहता है वो धरा पर ईश्वर का रूप 
         कोई कहता है वो जीवन-दायनी स्वरुप,
        सबसे अनोखी वो छाँव,होगी ऐसी कहाँ,
         मेरे लिए तो है वो सबसे प्यारी मेरी माँ 
              जब भी तपता मैं ज्वर में किसी भी रात,
             मेरे सिरहाने बैठ माथा सहलाते उसके हाथ,
             मेरी पीड़ा को पहचानती वो है मेरा जहाँ,
             मेरे लिए तो है वो सबसे प्यारी मेरी माँ 
      मैं कभी भूखा सो जाऊं, वो होने न देती,
      मेरे लिए वो खुद अपनी नींद भुला देती,
      मेरी प्रथम गुरु,मार्गदर्शिका ऐसी हो कहाँ,
       मेरे लिए तो है वो सबसे प्यारी मेरी माँ ///
===मन वकील 
              
    

                                      "मित्र"


  दो अक्षरों में ना हो सकता परिभाषित,
  केवल एक मात्रा में न सीमित संसार ,
  वो मेरे दुःख सुख सब सुनता पिरोता, 
  वो "मित्र" मेरे जीवन का है एक आधार,
          संकट हो जब भी, कोई छुपकर कभी आता,
          वो "मित्र" आगे आकर मेरी ढाल बन जाता,
          अनुचित से मुझे सदैव बचाकर ऐसे रखता,
          जीवन में भरने लगता मेरे भीतर सदाचार,
 हँसी ख़ुशी में मेरी पल पल वो हो शामिल,
 आनंद प्रमोद के रंगों से बना मुझे काबिल,
 मेरे निर्णय क्रिया कलापों पर रखता नज़र,
 वो "मित्र" ना केवल साथी, बल्कि सलाहकार,
 वो मित्र मेरे जीवन का है एक आधार 
        ===मन-वकील 

Saturday 20 April 2013

सर्द है वो आहटें, जो अचानक दस्तक देती,
वो नन्ही ठिठक कर,सहम सी जाती ऐसे,
कहीं हैवानियत बदल अपना रूप यूँ आती,
अंकल हाथों में टाफी लिए आये कभी जैसे,
नन्ही के मासूम चेहरे पर रेंगते वो दो हाथ,
किसी कालिख मल रहे हो रगड़ कर जैसे,
वो आँखों में छुपी उस अंकल के, वो वासना,
किसी दरिन्दिगी के आगाज़ की पहचान जैसे,
उस नन्ही के शरीर पर वो बनते हुए ज़ख्म,
चीख चीख कर दुहाई देते इंसानियत की, जैसे,
मैं बाप हूँ उस नन्ही का,जो जुल्म सह आई इतना,
बोलो ऐ दुनिया, अब जी पाऊंगा मैं तुझमे कैसे? 
==मन वकील के मन की आवाज़ 

Tuesday 26 March 2013

सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
उड़े गगन में अबीर गुलाल, ऋतु राज भौराया,
             सरसर मारे पिचकारी, मेरो प्यारो नन्द गोपाल,
             आई होली रे,अरे आई होली रे,कैसो मस्त धमाल,
             मोरपंख  धरे सीस पर,कन्हाई मेरो गहरो कूद लगावे,
             जिस तिस देखे वो गोपिका,वाको भरभर रंग लगावे,
             नन्द के लाला करे रास,रंगआनंद चहु दिश ऐसो छाया 
             सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
इत उत दौड़े बाल गोपाल, हाथों में भर भर रंग गुलाल,
सांवरी छबि मन मोहे रही,प्यारो लगे मोहे जसोदा लाल,
माखन भयो गुलाबी अबहु, सुंगंधि देत रहो चन्दन सौ कैसी,
गैयाँ भी सजे रंग में, अरे गैया होय गुलाबी लगो कामधेनु जैसी,
होरी खेलत गोकुल को प्यारो नटराज, देखो कैसो खेल दिखाया,
सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
           छिप छिप रही सबहु गोपियाँ,रंग ना देहो कोहू और डार,
           मन में बसे श्याम,अबहु मोहे केवल आन रँगे नन्द कुमार,
          अरे करे प्रतीक्षा सबरी अँखियाँ, निहारे अपने हरि की राह,
          कब आओगे श्याम मोहु रंगने, पिया मिलन मोहे ऐसो चाह,
          गोप कुमारी होए रही अधीर, मधुमास ज्यो फाल्गुन में आया,
          सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
          उड़े गगन में अबीर गुलाल, ऋतु राज भौराया,
             =========मन वकील 

Saturday 23 March 2013

देसी कट्टों और चाकुओं से नहीं चलती इस मुल्क की हकुमत,
अब तो एके 47 वाले गुंडों डकैतों को तो बुलाओ यारों,
कातिल हो गया है इस देश का निज़ाम, अब तो होश में आओ यारो,

है वो चीज़ रोटी तो यहाँ पर,
लेकिन मिलती है वो अमीर के घर,
कूड़ें में बीनते है वो नन्हे हाथ गरीब के,
जो मिलती उन्हें गर,ले जाते कुत्ते छीनकर,
खोल बंद गोदामों को,कोई  सड़ता हुआ अनाज बँटवाओ यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो,

 ख़ुदकुशी करना अब बन गया किसान की मजबूरी,
 जो छीन लेती है बड़ी कम्पनियाँ उसकी मेहनत पूरी,
जो बचा है वो कब चला जाएगा बैंकों के क़र्ज़ में,
अब करनी पड़ती है उसे शहरों में जाकर मजदूरी,
उस किसान को उसकी फसल का असली हक़ दिलवाओं यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम अब तो होश में आओ यारो,

शहर से निकल पड़ता हूँ जब भी गाँव की ओर,
नजर नहीं आये मुझे अब कहीं भी खेतो की ठौर,
जमीनों पर बुलंद होती माल इमारतों की वो तकदीरें,
बढता जाता है घरघर वो ट्रकों डंपरों का गहरा शोर,
खा गये नेता बिल्डर माफिया जो खेती, वो जमीने खाली करवाओं यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम,अब तो होश में आओ यारो,  

वोट है तो झोंपड पट्टी में बँटती है दारु और नोट,
अब राजनीति भी है गुंडागर्दी,सिर्फ चलता है खोट,
धर्मनिरपेक्षता भी नंगी है किसी वेश्या के तन सी,
रौन्धते रोज़ नेता कर उसे बदनाम, पाते जो अल्पसंख्यक की वोट,
अब तो इस झूठे समाजवाद से निकाल,इस मुल्क को बचाओं यारों 
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो,

अब नहीं होती मुझसे लाठी और गुलेलों से कश्मीर की हिफाजत,
कितने पत्थर और गोलियाँ झेलता हूँ,नेताओं की जिद बनी आफत,
रात मैं जागता हूँ खड़े खड़े, नेता के दरवाजों पर देता फिरता हूँ पहरे,
फिर दिन की उजालों में, पत्थर फेंकते मुझपर वो ढंके से अनजाने चेहरे,
काट कर ले गये मेरी गर्दन वो वहशी पडोसी,उन्हें दावत पर तो ना बुलाओ यारो,
कातिल हो गया है इस देश  का निजाम, अब तो होश में आओ यारो ......

Sunday 17 March 2013

कभी सहज सी होती वो हवा बन,
कभी तेज़ आंधी विचलित हो मन,
प्रेयसी भी है वो भार्या भी,संग गुरु,
शब्दों की मशीनगन जब वो हो शुरू,
सीधी है व्यव्हार में, कहती सदा स्पष्ट,
अच्छी लगे उसकी बात कभी देती कष्ट,
मनमोहिनी भी है वो है संग गजगामिनी,
मेरे जीवन की सौंदर्या भी वो है कामिनी,
वो मेरे बच्चों की माँ,मेरे जीवन का आधार,
जन्म दिवस पर तुम्हे समर्पित प्रिये ,मेरा प्यार ....

===मन वकील 
   इतालियन जॉब 

 कहीं से आया था भारत के समुद्र पर,
वो इटली का जहाज, अनजाने सफ़र,
जैसे आया हो कोई भाई बहन के घर,
बहन अगर हो बड़ी नेता जो यहाँ इधर,
तो उसके भाइयों को फिर कैसा हो डर,
उनमे से दो नौसैनिक भाइयों ने हिम्मत दिखाई,
बन्दूक तान  दो गरीब मछुआरों पर गोली चलाई,
हुआ दो मासूम भारतीयों का दर्दनाक कत्ल,
इटली को क्या फिक्र जब बेटी निकलेगी हल,
हुए वो हत्यारे जब भारत में ऐसे गिरफ्तार,
जेल में नहीं, रेस्ट हाउस में हुआ उनका सत्कार,
फिर न्याय हुआ पंगु जब बहन ने  दिया दखल,
अँधा न्याय हाथ लगा खोजता रहा अपनी शक्ल,
इतालियन भाइयों के देश वापिसी का मिला आदेश,
झट से बैठे प्लेन में, पहुंचे वो हत्यारे अपने देश,
बहन के कहने से,मखौल बनी देशी न्याय पालिका,
अब तो मुल्क चलाती है जो, इतालियन बालिका,
वापिसी का वादा बना झूठा,जिसका नहीं जवाब,
इटली ने वो कर दिखाया, जिसे कहते है इतालियन जॉब ...
--मन वकील 

Wednesday 13 March 2013

साम्यवाद नहीं है यहाँ मित्रों, पूंजीवादी की बोलती है तूती,
सच्ची बात की होती निंदा,बिकती हर जगह झूठ की बूटी,
बस पीयो और रहो नशे में पाबन्द,सूखे में सब सब्ज़ देखते
जो मन में ही गहरे हो गड्डे, कही और क्यों पत्थर फेंकते,
धरातल है यहाँ टेड़ा मेडा,पर नहीं है वो कहीं भी कुछ समतल,
पैर पड़ते है मेरे यहाँ वहां,क़दमों में आ बसी गिरावट हर पल,
गिरावट चरित्र में भी दिखाई अब चहु ओर पसरी आती नजर,
कुछ लालच था छुपा मन में, जो अब बढ़ कर दिखाता असर,
अब फैशन में टेरीकॉट है या नाइलोन, नहीं बचा कुछ भी सूती,  
साम्यवाद नहीं है यहाँ मित्रों, पूंजीवादी की बोलती है तूती,
==मन-वकील 

Saturday 9 March 2013

 धमक धमक धरा धमक, निरत करत शिव प्रचंडतम,
 केश उड़त नभ गति,ललाट पहु स्वेद रिसत अखंडतम,
मृदंग बजत बहुताल,चरण धरे मुद्रा असंख्य सुशोभितम, 
वृषभराज होत मंत्र मुग्ध, बहे दौ नेत्र अश्रु रूप अनंततम,
जटा परिवर्तिता वेग रूपा,भागीरथी लियो रूप विशालतम,
शंशांक भवत असहज बाल,अलौकिक शिव गति अंतर्तम,
त्रिलोकपति नेत्र रक्तवर्ण होत,रुद्राक्ष मंडित भूलोक गर्जन्तम,
नमन करत सर्व  देव,मानव असुर, वन्दित शिव चर्चितम,
मनोहरी छटा अवतरित,अर्चना करे विश्व महादेव उत्तमतम ..........

==मन वकील की ओर से शिव रात्रि महा-पर्व की शुभकामनाएं   

Friday 8 March 2013

कभी नीले नभ सी विशाल है वो,
अपने आँचल में संसार समेटे हुए,
संतान को सीने से चिपकाए बैठी,
अंतहीन अनंता आदिशक्ति अवतारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,

कभी प्रेम बरसती जल-भरे बदरा सी,
सर्व रस निज में संजोती वो है धरा सी,
मनसा या तन्मय कभी, काम की फुहार,
रिझाती पुरुष प्रेयसी बन,कर वो श्रृंगार,
रति सी वो,आनंद दायिनी वो है  दुःखहारी,
 वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी, 

कभी चंचला सी वो, मृग सी करती विचरण,
कभी गौर गंभीरा बन,अवसादों में हो हनन,
भावों में घिरी घिरी, कभी हो जाती भाव मुक्त,
बुद्धि विचार शीलता भरी, शंतरंज के दाँव युक्त,
राजनीती से हो परे, करे कभी राजनीति वो भारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,

अतुल्य बलशालिनी कभी, कभी हो जाए निस्तेज,
क्षणिक हो शक्ति विहीन, उत्पन्न करे पुनः वो तेज़,
सहती समस्त दुःख अनाचार,तो ह्रदय में भरे शोक,
मुस्कराए जो वो खुल कर, मदमस्त हो जाए लोक,
पूजित होय मूर्त बन, प्रतक्ष्य हो सहे पीड़ा वो सारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,
 
इस धरा पर नवजीवन का सार  वो, सर्व आधार वो, 
मानवता की खोज वो,विकास वो,है शक्ति की धार वो,
देवतुल्य जन्मिता,धरा पर देवागमन का आधार वो,
सीता भी वो, लक्ष्मी और उमा सरस्वती का अवतार वो,
देव दृष्टि भी वो, श्रृष्टि भी स्वयं,पुनः मुक्ति सी समसारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,

====विश्व नारी दिवस पर बधाई सहित ...मन वकील  

Tuesday 5 March 2013

कहाँ रहे अब ये सीरियल पहले जैसे खूबसूरत,
कहाँ रही उनमे वो पहले जैसी वो निराली बात,
अब वही त्रिकोण प्रेम कहानी में नाचती बारात ,
वही साजिशें वही नफरतों के उमड़े से जज्बात,
वही प्रेमिका का उघडा बदन, नशीली होती रात,
रुकी सी कहानी, कछुए सी चलती बेवजह बेबात,
कभी हीरो मर कर जी उठे, दिखाए अपनी जात,
कभी हीरोइन आदर्श में लिपटी, देती सीता को मात .... 
 

Friday 8 February 2013

                 क्या डेमोक्रेसी है यहाँ ?

कोई जब भी मुझसे आकर पूछता,
अरे भाई , क्या इस देश में डेमोक्रेसी है ?
मैं तुरंत ही उत्तर देता, हाँ , है भाई है ,

जब राजनीती में गुंडे चोर सब मिलकर,
संसद में घुस अपनी सरकार बनाते, 
जब नेताओं के भाई बेटे योग्य नेता हो 
और चमचे बड़े पद पर आसीन हो जाते,
तो भाई मेरे, मत कहो कोई औटोक्रेसी है   
 अरे भाई , क्या इस देश में डेमोक्रेसी है ?

जब शिक्षा बिकने लगी अब यहाँ खुले आम ,
जैसी भी डिग्री चाहो, खरीदो बस देकर दाम, 
संसद विधानसभाओं में बिल पास हो हर शाम,
नई यूनिवर्सिटी खोल रोज़ टकराते अपने ज़ाम,
नई शिक्षा का विकास है, नहीं कोई हिप्पोक्रेसी है,
 अरे भाई , क्या इस देश में डेमोक्रेसी है ?

सरकारी जमीनों पर हो कब्ज़े, बने रोज़ धर्मस्थान,
पार्क की जमीन को भी खा जाए वो नया कब्रिस्तान,
नेता नाम पट्टिका चिपका, अलापे वहाँ अपनी तान,
बाल विकास कागज़ी बना,स्कूल का गम हुआ मैदान,
भारत विकास है ये मित्र, क्या हुआ जो तरीका देसी है,
 अरे भाई , क्या इस देश में डेमोक्रेसी है ?

बॉर्डर पर सैनिक चाहे कटवाए रोज़ ही अपने शीश,
या नक्सली भरे जवानों के शवों में बारूद और कीच,
मंत्री जी बस चेक थमा कर, बने देश के मुख आधीश,
विधवा रोती बच्चों के संग, मीडिया हुआ खबरी नीच,
शत्रु को दावत पर बुलाये पीएम, कैसी डिप्लोमेसी है 
 अरे भाई , क्या इस देश में डेमोक्रेसी है ?

--मन वकील 

Friday 25 January 2013



        सरेआम लुटी जाए यहाँ औरत की अस्मत,
        कदम कदम पर शोषण, सहना बस किस्मत,
       नारी उत्थान है नारा,फैली चहु ओर हवस है,
       कैसा है भारत गणतंत्र ,कैसा गणतंत्र दिवस है,
          
       अध्यापक होते यहाँ भर्ती, जो भरते है रिश्वत,
       आरक्षण का जोर चले,योग्यता ना बनी हसरत,
       नेताजी जी तिजोरी भरी, चेहरे पर उनके हवस है 
        कैसा है भारत गणतंत्र ,कैसा गणतंत्र दिवस है,

       आतंकवाद फैला है कहीं दिखती ना कोई राह,
      झूठी धर्म निरपेक्षता है, बस कुर्सी की है चाह ,
      सच्चों पर चले लाठियां,चमचों को ताज़े-सबस है,
      कैसा है भारत गणतंत्र ,कैसा गणतंत्र दिवस है,

     महंगाई अब करे तरक्की, संग भुखमरी भी बढ़े,
     गरीब को पेटभर रोटी नहीं, अम्बानी तरक्की करे,
    जर्नलिस्ट भी है बिक गया, पदमश्री को जो हवस है,
    कैसा है भारत गणतंत्र ,कैसा गणतंत्र दिवस है,

   ठंडी रात में पहन कर वर्दी, वो देता है सीमा पर पहरा,
   हाथ नहीं कांपते है उस वीर के, चाहे कोहरा हो गहरा,
   मौत ले जाए संग, उसका परिवार भूखा और बेबस है 
  कैसा है भारत गणतंत्र ,कैसा गणतंत्र दिवस है,
     
     परिवारवाद है राजनीति,भाई भतीजावाद पलता, 
     नेताजी तो कब के मर गये,वशंज का सिक्का चलता,
    अब उल्लू है हर शाख पर, देश में बढ़ता जो तमस है 
     कैसा है भारत गणतंत्र ,कैसा गणतंत्र दिवस है,
     

Thursday 24 January 2013


जो आये थे कभी यहाँ, महफ़िल सँवारने को,
        वो आस्तीन के सांप बन,इसे बिगाड़ चले गये,
        क्या सूरत थी इस सुर्ख महफ़िल की,वो हमारी,
        इस अहले चमन को यूँ ही उजाड़ कर चले गये,
       गर ना चाहते थे वो, इस आवाम ओ गुलिस्ताँ को,
      तो कह देते हमें, कर देते उन्हें हम प्यार से रुखसत,
      किया खुद को भी जलील,लिख जलालत से भरे ख़त,
       खुद ही अपनी शख्सियत को क्यूँ बिगाड़ कर चले गये  
       जो आये थे कभी यहाँ, महफ़िल सँवारने को,
        वो आस्तीन के सांप बन,इसे बिगाड़ चले गये,

Tuesday 22 January 2013



        ना कोई आता है अब मेरे घर पर , 
       ना मैं बुलाया जाता किसी दर पर,
       बस मसरूफ़  सा हूँ अपने आप में, 
       अब जी रहा हूँ दोस्तों से झगड कर,
       कोई आहट भी जरा सी कहीं होती,
      कलेजा मुहँ को दौड़ पड़ता यूँ डर कर 
       ना कोई आता है अब मेरे घर पर , 
       ना मैं बुलाया जाता किसी दर पर,
     मेरे बाजुओं में आकर कभी तो सिमट,
     क्यूँ चले, तू किसी और को पकड कर,
     रंजिशें भी रखे,कभी प्यार भी जतलाये,
     फिर आँसुओं को बिखरे मुझसे यूँ लिपट कर 
     ना कोई आता है अब मेरे घर पर , 
       ना मैं बुलाया जाता किसी दर पर,
       

Thursday 17 January 2013

 शीश विछिन्न हुए रण में, सिंह दीयो निज जीवन वारि,
माँ प्रिये वाको हर क्षण जैसे, पर मातृभूमि  सबसो प्यारी,
भार्या तज सबहु श्रृंगार,बुझे काहे धरा मुझसे उन्हें  दुलारी,
तात बन मूक निहारे नभ,कैसे गर्व करूँ अब मैं,हे गिरधारी 

Saturday 12 January 2013

                              कौन है बुद्दिजीवी 
          बचपन से एक ही सवाल बार बार,
          कुरेदता रहता  मेरे मन में हर बार,
          क्या होता है वो शख्स "बुद्धिजीवी"
          कैसा दिखता होगा वो " बुद्धिजीवी "
          क्या उसके सिर पर होगा कोई गुमड,
          या माथे पर रेखायें होंगी उमड़ उमड़,
          क्या वो बुद्दि के संग होता होगा मस्त,
          या उसकी भयंकर बातें करती "पस्त",
          शायद दो सींग होंगे उसके सिर पर,
          क्योकि गदर्भ सा नहीं होगा वो ऊपर,
          खोजता रहा मन वकील बस यहाँ वहां,
          जब बड़ा हुआ तो मिले अनेको हर जगह,
          व्यर्थ में अर्थ निकालते,बेअर्थ हो जीते,
          कभी मीनमेख निकाल,औरों के फटे सीते,
         कहीं भी कोई पत्थर उठाओ,निकले ये परजीवी,
         मन वकील मुर्ख भला, जो नहीं है वो बुद्धिजीवी।।।।