देसी कट्टों और चाकुओं से नहीं चलती इस मुल्क की हकुमत,
अब तो एके 47 वाले गुंडों डकैतों को तो बुलाओ यारों,
कातिल हो गया है इस देश का निज़ाम, अब तो होश में आओ यारो,
है वो चीज़ रोटी तो यहाँ पर,
लेकिन मिलती है वो अमीर के घर,
कूड़ें में बीनते है वो नन्हे हाथ गरीब के,
जो मिलती उन्हें गर,ले जाते कुत्ते छीनकर,
खोल बंद गोदामों को,कोई सड़ता हुआ अनाज बँटवाओ यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो,
ख़ुदकुशी करना अब बन गया किसान की मजबूरी,
जो छीन लेती है बड़ी कम्पनियाँ उसकी मेहनत पूरी,
जो बचा है वो कब चला जाएगा बैंकों के क़र्ज़ में,
अब करनी पड़ती है उसे शहरों में जाकर मजदूरी,
उस किसान को उसकी फसल का असली हक़ दिलवाओं यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम अब तो होश में आओ यारो,
शहर से निकल पड़ता हूँ जब भी गाँव की ओर,
नजर नहीं आये मुझे अब कहीं भी खेतो की ठौर,
जमीनों पर बुलंद होती माल इमारतों की वो तकदीरें,
बढता जाता है घरघर वो ट्रकों डंपरों का गहरा शोर,
खा गये नेता बिल्डर माफिया जो खेती, वो जमीने खाली करवाओं यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम,अब तो होश में आओ यारो,
वोट है तो झोंपड पट्टी में बँटती है दारु और नोट,
अब राजनीति भी है गुंडागर्दी,सिर्फ चलता है खोट,
धर्मनिरपेक्षता भी नंगी है किसी वेश्या के तन सी,
रौन्धते रोज़ नेता कर उसे बदनाम, पाते जो अल्पसंख्यक की वोट,
अब तो इस झूठे समाजवाद से निकाल,इस मुल्क को बचाओं यारों
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो,
अब नहीं होती मुझसे लाठी और गुलेलों से कश्मीर की हिफाजत,
कितने पत्थर और गोलियाँ झेलता हूँ,नेताओं की जिद बनी आफत,
रात मैं जागता हूँ खड़े खड़े, नेता के दरवाजों पर देता फिरता हूँ पहरे,
फिर दिन की उजालों में, पत्थर फेंकते मुझपर वो ढंके से अनजाने चेहरे,
काट कर ले गये मेरी गर्दन वो वहशी पडोसी,उन्हें दावत पर तो ना बुलाओ यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो ......