मोहे कहे वो कविवर , जो स्वयं रज रज छंद रचाए,
मुग्ध करें सबरो जन, सौरभ सो कबि कौन सजाए,
प्रभु अनुकम्पा सो रहे, नव गीत इहा नित-२ रचाए,
निज रहत गुणी महागुनी, बन अनुज मोहे भरमाय,
काहे देबत मोहे इहो पद,मन वकील कबहू चितलाय,
सुगंधि बन छायो रहत, सौरभ गीतकार भलो कहलाय ...................
==मन वकील
मुग्ध करें सबरो जन, सौरभ सो कबि कौन सजाए,
प्रभु अनुकम्पा सो रहे, नव गीत इहा नित-२ रचाए,
निज रहत गुणी महागुनी, बन अनुज मोहे भरमाय,
काहे देबत मोहे इहो पद,मन वकील कबहू चितलाय,
सुगंधि बन छायो रहत, सौरभ गीतकार भलो कहलाय ...................
==मन वकील