" शहीद "
वो रोज़ मरता था , उस जेल की कोठरी में,
हर रोज़ बिना नाग़ा, पल पल घुट घुट कर,
इस देश के लिए अपनी जवानी लुटाते हुए,
कभी पीटा जाता बेवजह,कभी बेकारण ही,
सहता वो चुपचाप, मन पर जिस्म पर सब,
रोज़ इक नया नश्तर,नए घाव छोड़ जाता,
अब तो आँसू भी सूख गये थे उन आँखों में,
जिनमे कभी बसती थी रिहाई की उम्मीद,
कौन करवाता उसकी रिहाई? क्यों? कब?
जब उसके वतन ने ही भुला जो दिया उसे,
अहसान फ़रामोश मंत्री,संग बहरी सरकार,
अपनों को रुलाने में,जो गैरों को मनाने में,
अपना फर्ज़ भुला बैठी वो बैगैरत सरकार,
इक दिन ऐसा आ ही गया,जब वो शख्स,
खूब पिटा, बिल़ा वजह पिटा, उस जेल में,
हड्डियां टूटी, अंग बे-अंग हो गये नीले से,
फिर कितने दिन और लड़ता वो जुल्म से,
बस मौत की परी ले गयी अपने साथ उसे,
सब दर्द सब जुल्मों से परे,अपने साथ उसे,
फिर जागी वो बैगैरत सरकार नींद से ऐसे,
आननफानन में दे दिया तमगा "शहीद" का,
उस सच्चे शहीद की जख्मों से भरी लाश को ...
==मन वकील