Friday 31 May 2013


हर आदमी ही आया इस जहाँ में बस अकेला,
कितने अकेले जो मिले, लग गया इक मेला,
कोई चले धीरे-धीरे,कोई चलता तेज़ अविराम,
कोई पहुंचे मंजिल तक,कोई करे राह में विश्राम,
अनजानी डगर सभी की,अनजाने ही आते दौर, 
सूने सूने रास्ते सूने मन,हमराही ना कोई और,
तेज़ पड़ती धूप मुझपर,व्याकुल होती मेरी काया,
ना कोई मेरे साथ चलता, साथ चले मेरा ही साया ===मन वकील 

Sunday 5 May 2013


एक मित्र हमारे बोले, इक दिन हमसे यूँ आकर,
कोई फायदा नहीं मिला हमें,अंग्रेजी स्कूल जाकर,
ना हुआ इज़ाफा अंग्रेजी में,रहा मेरा हाथ युहीं तंग,
खूब किताबे चाट गये,अंग्रेजी व्याकरण से लड़ी जंग, 
कैसे बोलते अंग्रेजी फटाफट,मन वकील बतलाओ?
कैसे रोब डाले कान्वेंट वाली बीबी पर,हमें समझाओ ,
मन वकील हम बोले, मित्र बतलाऊं तुमे समझाए,
झटपट अंग्रेजी बोलने लगोगे,जो करोगे यह उपाय, 
रोज़ घर जाने से पहले, चढ़ा लो विस्की का इक पव्वा,
दस मिनट में गिटपिट शुरू, ना  रहे अंग्रेजी का हव्वा,
===मन वकील 

Friday 3 May 2013

कभी झूठ बोलना भी सीख लिया करो ,ऐ दोस्त,
हर काम सच्चाई से नहीं होता अब मेरे वतन में,
काले काम वालों ने घेर रखी है संसद में कुर्सियाँ,
टेंडर बिन कमाई के नहीं होता अब मेरे वतन में,
ना जाने और कितने और धोखें करेगा वो पडोसी,
अब फैसला सीधाई से नहीं होता है मेरे वतन में,
ऐ चीन घेर ले जितनी भी जमीन,तू यहाँ चाहेगा,
फौजी जोर कड़ाई से नहीं होता अब मेरे वतन में,
==मन वकील .... 

Thursday 2 May 2013

                           " शहीद "
           वो रोज़ मरता था , उस जेल की कोठरी में,
           हर रोज़ बिना नाग़ा, पल पल घुट घुट कर,
           इस देश के लिए अपनी जवानी लुटाते हुए,
           कभी पीटा जाता बेवजह,कभी बेकारण ही,
           सहता वो चुपचाप, मन पर जिस्म पर सब,
           रोज़ इक नया नश्तर,नए घाव छोड़ जाता, 
           अब तो आँसू भी सूख गये थे उन आँखों में,
           जिनमे कभी बसती थी रिहाई की उम्मीद,
           कौन करवाता उसकी रिहाई? क्यों? कब? 
           जब उसके वतन ने ही भुला जो दिया उसे,
           अहसान फ़रामोश मंत्री,संग बहरी सरकार,
           अपनों को रुलाने में,जो गैरों को मनाने में,
           अपना फर्ज़ भुला बैठी वो बैगैरत सरकार,
           इक दिन ऐसा आ ही गया,जब वो शख्स, 
           खूब पिटा, बिल़ा वजह पिटा, उस जेल में,
           हड्डियां टूटी, अंग बे-अंग हो गये नीले से,
           फिर कितने दिन और लड़ता वो जुल्म से,
           बस मौत की परी ले गयी अपने साथ उसे,
           सब दर्द सब जुल्मों से परे,अपने साथ उसे,
           फिर जागी वो बैगैरत सरकार नींद से ऐसे,
           आननफानन में दे दिया तमगा "शहीद" का,
           उस सच्चे शहीद की जख्मों से भरी लाश को ...
          ==मन वकील