Saturday 22 March 2014


कलम लेकर बैठा हूँ मैं आज फिर कुछ लिखने,
शून्य है दिमाग,भाव ह्रदय में उमड़ उमड़ से रहे,
अक्षरोँ की चींटियाँ ना जाने कहाँ से लगी काटने,
शब्द न जाने क्यों? मन के कोने में झग़ड से रहे,

क्या लिखूं मैं ?अपने पिता का आकस्मिक स्वर्गवास   
या लिखूं मैं,स्वयं का क्रंदन या माँ की हालत बदहवास,
पुनः पुनः जागती रिक्तता, अश्रु बदरा बन उमड़ से रहे  
शब्द न जाने क्यों? मन के कोने में झग़ड से रहे,

जीवन है फिर से लगेगा चलने,मान निज को अमित,
भुला देगा वो मृत्य़ु सत्य,बन अविरल गतिशील फलित,
स्मृतियों में होंगे स्थिर,अब जो स्वप्न बन उमड़ से रहे 
शब्द न जाने क्यों? मन के कोने में झग़ड से रहे,

==मन वकील 

Thursday 20 March 2014

                                पिता का साया 

              उनके मज़बूत हाथों में मेरे नन्हे हाथ थे थमे, 
             और मैं सीख गया दुनिया की राह पर चलना,
             अपनी भूख भुलाकर वो कड़ी मेहनत थे करते, 
             माँ मुझे देती थाली में सजाकर,यूँ भरपेट खाना,
            अपनी फटी बनियान को चुपचाप सी लेते थे वो,
            पर मुझे नयी टी-शर्ट में देखकर वो खूब खुश होते,
            मेरी परवरिश के लिए न्यौछावर कर दिए सुख,
            मुझे बड़ा होते देख जो हमेशा खुश बहुत थे होते 
            वो पिताजी थे मेरे, जो थे मेरे जीवन का आधार,
            छोड़कर चले गये अचानक, अब कहाँ होंगे सोते 
            मैं यहाँ वहाँ ढूँढता हूँ उन्हें, वो उनकी शीतल छाया,
            बहुत नसीब वाला था मैं, जब तक था पिता का साया ===

        ( अपने परम प्रिये पिता जी की याद में )

==मन वकील