Monday 16 April 2012

.....रेलगाड़ी का नाटक/////
चाय चाय चाय ........काफी काफी काफी .....
ब्रेड पकोड़ा गर्म , गर्म ब्रेड पकोड़े गरमा गर्म,
ऐ भैय्या ...अरे चाय वाले ,,,जल्दी से दो चाय ...
कितने की है ....साब खुले पैसे दीजिएगा ......
भागते हुए लोग , कुछ हाथे में बेग थामे हुए,
कुछ बच्चों के समेटे गोद में, हाथों से खींचते,
एक तरह की भगदड़, दो दिशाओं में होती सी,
एक सूचना....जनशताब्दी प्लेटफार्म ४ नंबर
अरे यार,....... ये कौन सा कुछ कोच नंबर है ?
गोविंदी अरे आगे है ...आगे वाला कोच होगा ....
कुछ अजब से लोग, कुछ अनजानी सी लगती,
पर पहचानी सी आदम शक्लों की भीड़,
यूँ जान पड़ता जैसे, सब निकल पड़े है,
किसी सफ़र की ओर, अपने शहर से दूर,
या फिर अपने शहर की ओर, उम्मीद से,
या फिर किसी निराशा को खुद में समेटे हुए,
कुछ चेहरे पर तनाव, कुछ पर मायूसी सी,
कुछ ख़ुशी से भरे लगते, तो कुछ शरारती से,
भैया ...यहाँ कोई बैठा हुआ है, या सीट खाली है,
वो पेशाब करने गया है, आता ही होगा अभी,
थैले थामे कुछ लोग , यही पूछताछ करते हुए,
शोरगुल है या फिर बसी हुई एक नयी दुनिया,
रेलवे स्टेशन पर रुकी हुई रेलगाड़ी के इर्दगिर्द,
बस यही नज़ारा, एक नए घटना क्रम सा दौड़ता,
तब कुछ पल को, समय कही ठहरने को होता,
और तभी गाड़ी का गर्म इंजन, एकाएक ताव में,
चिंघाड़ता हुआ,आगे बढ़ने को उतावला हो उठता,
गति आने लगती, उन डिब्बों में, बाहर हजूम में ,
अगले स्टेशन पर नए नाट्य मंचन की तैयारी में........
==मन-वकील

Thursday 12 April 2012

सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा
राहगीरों को लुटने वाले डाकू कहाँ हो गए गुम,
सांसद बन अब उन्हें सड़कों पे लूटना नहीं गंवारा,
जनता के पैसे से अब वो जनता को ही रौन्धतें,
देश को अब कौन कृष्ण आकर देगा सहारा,
शोर मत करों अब यहाँ नहीं होगी कोई क्रांति,
अब तो मौनव्रत करने पे लगती है १४४ की धारा,
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा
खेल संगठनों के पदों पर काबिज़ है बेशर्म बेखिलाड़ी,
कौन बनेगा यहाँ मिल्खा या ध्यानचंद दुबारा,
गुब्बारों के नाम पर उड़ा देते है जनता का धन,
बेशर्म ये बाबू घुमने चले जाते है लन्दन या बुखारा,
विकास शब्द अब रह गया है इक नारा बनकर, 
ज्ञान और शिक्षा को अब आरक्षण ने है मारा
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा,
बांटकर खाते है धर्मं और जातियों में हमें, ये नेता,
चरित्र व् राज धर्म से नहीं होता अब इनका गुज़ारा ,
वोट की अब कीमत झुग्गियों में अब खूब है बंटती,
दारु हो या कम्बल, बटन दबवाते है कई-२ हजारा,
बहु बेटियों के नाम पर बंटती है खूब वजीफों के रकम,
राह चलते उन्हें लुटते, संग पुलिस लेती है चटखारा,
सभी आसरे से दूर आज मेरा देश है बेसहारा
अब भ्रष्टाचारियों ने इसे कालिख से है संवारा ...
==मन वकील

Tuesday 10 April 2012

भारत जैसे देश में,चहुओर गिद्ध रहे मंडराए,
अफज़ल गुरु के हित में, संसद दियो रूलाय,
मुंबई नरसंहारी को वीर सुशोभित करवाये,
नित निरामिष भोज पकवान वाको खिलाय,
ढोंग करे न्याय को,सलमान खुर्शीद दियो रूलाय,
दिग्विनय भी अब आतंकियों के घर में खाय,
१९८४ के दंगों के दोषी जेड सुरक्षा से भरमाय,
कश्मीर से पलायित को सबरौ दियो भुलाय,
जरदारी के आगे,दियो निजदेश सबहु बिछाय,
जो बात करे कोहु भारत की,श्री राम की इहा,
साम्प्रदायिक वो जन, उद्ध्घोषित हो जाए,
अब प्रज्ञा या पुरोहित को कहाँ मिले न्याय,
जो धन आतंकियों के उत्थान में बँट जाय .......