वक्त की आहट में, हम खुद को ही खोजते रहे,
कब मिलेगी खुद से खुद को राह,ये सोचते रहे,
कुछ रंजिशे थी, कुछ था उनका वो बेबाकपन,
कभी मुहँ छुपाये रहे,कभी दिखाते अपना फन,
उनके दिये हर जख्म को,यूँ खुद को कुरेदते रहे,
वक्त की आहट में, हम खुद को ही खोजते रहे,
तन्हाइयों की मत पूछ मुझसे,वो सरमाया मेरा,
उनमे बसकर अक्सर,देखा करते यूँ साया तेरा,
मालूम था हमे,तुम ना आ पाओगे कभी मुझ तक,
घर का मेरा पता भी,तुम भुला चुके होगे अब तक,
फिर ना जाने क्यों,नजरो से राह यूँ टटोलते रहे,
वक्त की आहट में, हम खुद को ही खोजते रहे,
==मन वकील के मन की आवाज़