Tuesday 10 January 2012

मैं हूँ बस मैं, अरे यहाँ मुझमें कोई और नहीं है,
आज का पल है ये, कोई और बीता दौर नहीं है,
यूँ आसमां से ही टूट कर गिरते है,सितारें यहाँ,
चाँद नहीं, बस यही फलसफा, कुछ और नहीं है,
मत रो कि गर्दिशों में घिरे रहने से आएगी हिम्मत,
बुरे वक्त में, इससे बड़ी उम्मीद कुछ और नहीं है,
मत सोच, कि यहाँ रहना है तुझे ताउम्र बाबस्ता,
दुनिया बस एक मुसाफिरखाना से बढ़कर कुछ और नहीं है ............
---मन-वकील ....

Saturday 7 January 2012

जतन से जतन, हिम्मत से हिम्मत तक,
राह की सब कठनाईयां,लांगने का हौसला,
महीन डोर से बंधी हुई, मन में एक आस सी,
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,
वेदना से आहत हुई, चेतना भीतर ही भीतर,
घुट घुट कर दम तोडती, पर होंठ सिये हुए,
असफलता से भारी हुआ, पल पल अहसास,
पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,
कर्मों का पुनः पुनः, हिसाब करती जिन्दगी,
इस जन्म के थे, या फिर किये होंगे पूर्व में,
सवालों से घिरा हुआ, मैं उदासीनता समेटे,
 पर ना जाने कहाँ, जाकर सो गया है भाग्य,
===मन वकील

Sunday 1 January 2012

रखाकर तू हौंसले अब, सीने में डालकर इरादों का फौलाद,
दौर है कुछ ऐसा अब,जो आँखें दिखाती है अपनी ही औलाद,
वक्त की पहचान कर अब, जेहन को दिमाग से ऐसे जोड़कर,
कौन भौंक देगा खंज़र, तेरी पीठ में ऐसे ये झूठे नाते तोड़कर,
राहें होगी अनेक पर संग होंगें उनपर मुसीबतों के कई पत्थर,
चलना तो होगा युहीं इन्ही राहों पर, चाहे रोकर या फिर हसंकर,
सोच भी बदलेगी,जब देखेगा तू बदलती दुनिया की अजब रंगत,
अकेला बढ़ चलाचल जिन्दगी के काफिले में,न जोड़ कोई संगत,
गैरों ओ अपनों के फर्क में, रहेगी एक महीन सी लकीर यहाँ वहाँ,
ढूंढ़ले बस रोशनी डगर पर,खुशियाँ अब मिलती इस जहाँ में कहाँ,
सफ़र पूरा होते ही निकल, पहन कर ५ गज भर की सफ़ेद चादर,
लोग बस मिटटी में मिला देंगे,मिलता है बाद में मुरझाये फूलों से आदर ....
==मन-वकील

रखाकर तू हौंसले अब, सीने में डालकर इरादों का फौलाद,
दौर है कुछ ऐसा अब,जो आँखें दिखाती है अपनी ही औलाद,
वक्त की पहचान कर अब, जेहन को दिमाग से ऐसे जोड़कर,
कौन भौंक देगा खंज़र, तेरी पीठ में ऐसे ये झूठे नाते तोड़कर,
राहें होगी अनेक पर संग होंगें उनपर मुसीबतों के कई पत्थर,
चलना तो होगा युहीं इन्ही राहों पर, चाहे रोकर या फिर हसंकर,
सोच भी बदलेगी,जब देखेगा तू बदलती दुनिया की अजब रंगत,
अकेला बढ़ चलाचल जिन्दगी के काफिले में,न जोड़ कोई संगत,
गैरों ओ अपनों के फर्क में, रहेगी एक महीन सी लकीर यहाँ वहाँ,
ढूंढ़ले बस रोशनी डगर पर,खुशियाँ अब मिलती इस जहाँ में कहाँ,
सफ़र पूरा होते ही निकल, पहन कर ५ गज भर की सफ़ेद चादर,
लोग बस मिटटी में मिला देंगे, सूखे फूलों से ही मिलेगा वो आदर ....
==मन-वकील

दौर की फितरत

रखाकर तू हौंसले अब, सीने में डालकर इरादों का फौलाद,
दौर है कुछ ऐसा अब,जो आँखें दिखाती है अपनी ही औलाद,
वक्त की पहचान कर अब, जेहन को दिमाग से ऐसे जोड़कर,
कौन भौंक देगा खंज़र, तेरी पीठ में ऐसे ये झूठे नाते तोड़कर,
राहें होगी अनेक पर संग होंगें उनपर मुसीबतों के कई पत्थर,
चलना तो होगा युहीं इन्ही राहों पर, चाहे रोकर या फिर हसंकर,
सोच भी बदलेगी,जब देखेगा तू बदलती दुनिया की अजब रंगत,
अकेला बढ़ चलाचल जिन्दगी के काफिले में,न जोड़ कोई संगत,
गैरों ओ अपनों के फर्क में, रहेगी एक महीन से लकीर यहाँ वहाँ,
ढूंढ़ले बस रोशनी डगर पर,खुशियाँ अब मिलती इस जहाँ में कहाँ,
सफ़र पूरा होते ही निकल, पहन कर ५ गज भर की सफ़ेद चादर,
लोग बस मिटटी में मिला देंगे, सूखे फूलों से ही मिलेगा वो आदर ....
==मन-वकील