वो पढ़ा लिखा है खूब पढ़ा लिखा,
ऐसा वो खुद नहीं कहता किसी से,
दुनिया कहती,उसके दोस्त कहते,
पर वो चल ना सका इस दुनिया में,
या फिर कहो, वो कामियाब नहीं,
सीधा है, चालाकी नहीं जानता वो,
धूर्तता की बारीकियों से अनजान,
आज के दौर में झूठ बोल कमाना,
शायद वो कभी सीख ही ना पाया,
सरल होना उसकी फितरत है या
कोई जन्मजात मूर्खता की निशानी,
ज्ञान इल्म या जानकारी ये शब्द,
उसके दिमाग में गढ़े हुए हो जैसे,
कील ज्यो लकड़ी के शहतीर में,
वो बोल लिख भी अच्छा लेता है ,
पर इस दुनिया की वो जुबान तो,
जिसमे फरेब हो, वो नहीं जानता,
दुनिया में कामियाबी की वो रस्में,
जिनमे दुसरे के कंधे पर चढ़कर,
अपनी पतंग निकाल लेना जैसे,
वो नाकारा बन बिलकुल नहीं जानता,
उसका बाप आज भी अपने टूटे हुए,
खटारा स्कूटर पर बैठ कमाने जाता,
और वो घर बैठ,सिर्फ इंतज़ार करता,
जैसे अपनी काबिलियत को आंकने की,
और लोग कहते, बाप की रोटियां तोड़ता,
या फिर बीवी के टुकड़ों पर पलने वाला,
वो कहीं जा तेल भी नहीं बेच सकता,
शायद फ़ारसी नहीं पढ़ी हुई उसने कभी,
कमियाँ है उसमे शायद बहुत ज्यादा,
जो दुनिया के अंदाज़ और आगाज़ में,
वो दौड़ नहीं पाया शायद लंगड़ा रहा वो,
किसी को धोखा देना,छल कपट संजोना,
झूठ के सहारे, ऊँचे ऊँचें महल सजाना,
उसने इस इल्म को कभी नहीं पहचाना,
चंद चांदी के सिक्कों को कमाना जैसे,
धरती से आसमान के सफ़र करने सा,
लोग काम तो देंगे, पर उसके दाम नहीं,
फरेब से खसोट लेता तो शायद ठीक था,
और फिर बन गया वो इस दुनिया में,
एक और पढालिखा बेरोजगार इंसान,
या यूंह कहिये इस दुनिया की जुबान में,
नकारा, जी हाँ, नकारा, कमबख्त नकारा,
===मन वकील