Wednesday 24 August 2011

वो लड़ते है उसके नाम पर अब उसे नहीं है खोजते,
वो महसूस करते है उसे पर, अब उसे नहीं सोचते,
चहु ओर फैली  हवाओं से उजालों तक वो ही छाया है,
करिश्मे उसके अज़ब, कभी रूप धर कही बिन-काया है,
कोई बोले उसे राम या कृष्ण कोई हो शिव ॐ से ही शुरू,
कोई सजदे कर बोले अल्लाह, कोई उच्चारे हे वाहे गुरु,
कभी ईसा है वो मेरा कभी गौतम बनके धरती पर आये वो,
कभी निरंकार है कभी अवतारों का ही कोई रूप सजाए वो,
वो है तो फिर बहस करने से, क्यूँकर ज्ञान हम ऐसे बघारे,
अरे वो है चहु ओर, हर जगहयहाँ वहां इर्द गिर्द बसता हमारे,
=====मन-वकील
चाँद सिक्कों के बदले बिकती है आज ईमानदारी,
यहाँ चलती है यारों सरकारी महकमों में इनामदारी,
कहीं कोई रुकावट हो या हो कोई भी अड़चन कैसी भी,
सुना दो खनक सिक्कों की,हल हो मुसीबत जैसी भी,
कही कही नहीं अब तो, हर शाख पर उल्लू ही बैठा है,
यहाँ माई-बाप है रिश्वत, चहु ओर भ्रष्टाचार ही ऐंठा है, 
अब अंधे की लाठी बनकर, सिर्फ पैसा ही सब चलता है,
कहाँ कहाँ मिटाए इसको, अब भ्रष्टाचार चहुओर पलता है...
===मन-वकील

Sunday 21 August 2011

चारों ओर है हाहाकार, यहाँ अब हर शख्स रोता है,
फैली है बेरोज़गारी, पढ़ा- लिखा नौजवान रोता है,
बैठे है पर फैलाएं यहाँ, चहु ओर गिध्दों के झुण्ड,
धरा बंजर हो गयी है, और सूख गए जल के कुण्ड,
हवाओं में भी है जहर,प्रांतीयता और क्षेत्रवाद से भरा,
अपराध अब संसद में पलता है, चाहे छोटा या बड़ा,
बनकर हमारे खुदा, वो अब हमें ही को लुटते हर-पल,
भरे है अब बाहुबली सरीखे नेता, चाहे कैसा भी हो दल,
भ्रष्टाचार की चादर, अब हर सरकारी बाबू तान कर सोता,
बंगले है कारें है, चाहे इस देश का जन-मानस भूख से रोता,
सिक्का हो कैसा भी, बस सरकारी लोगों का ही है चलता,
संसद या न्याय-पालिका,सभी जगह इनका ही जोर है चलता,
किसें है खबर, अब कहाँ हमारी आजादी है अब खोयी ?
कौन जानता है किसकी आँखें उसे ढूंढ़ते हुए है कितनी रोई?
भुला बैठे है अब हम अपनी भारतीयता की एक वो पहचान,
जिन्होंने दी शहादत इसके लिए भुला दी उनकी भी पहचान,
अब तो इंतज़ार है,कब चलेगी इस मुल्क में बदलाव की आंधी,
जागो ऐ मेरे यारों, बनके अब अन्ना हजारे और महात्मा गाँधी ........
==मन-वकील

Friday 19 August 2011

दुआओं के लिए भी उठाया करों अपने ये हाथ मेरे दोस्त,
क्यूकर उठ जाते है ? ये अक्सर किसी सितमगर की तरह,
मांगने से अच्छा हो , अगर किसी काम में लग जाएँ ये दोनों,
वर्ना टटोलतें रहेंगे औरों की जेबें, किसी जेब-तराश की तरह......
===मन-वकील

Sunday 14 August 2011

अगर जिया हूँ यहाँ मैं,
तो डरपोक बनकर ऐसे,
कोई बात मुहँ पे कह दूँ,
इतनी हिम्मत हो कैसे,
सच बोलने पर मिलती
यहाँ सिर्फ पत्थरों से सज़ा,
झूठी तारीफों और चापलूसी ,
दिलवाती है यहाँ रौनक-मज़ा,
मैं कोई ईसा या गाँधी नहीं हूँ,
लाऊं बदलाव ऐसी आंधी नहीं हूँ ,
मुझे जीना है यहाँ अभी और,
चाहे ला दूँ झूठों के कही दौर ,   
मुझे नहीं बनना यहाँ सत्यवादी ,
रहने दो मुझे गुलाम, नहीं चाहिए आज़ादी....
===मन-वकील
जय हिंद जय भारत जय हिंद जय भारत
जय भारत के जन-मानस जय भारत की सेना,
जय भारत के सभी प्रदेश, जय भारत की नदियाँ ,
जय भारत के सिन्धु और द्वीप, जय भारत का नभ
जय भारत के परबत पहाड़ और जय भारत की धरा
जय भारत के अवेशष और जय भारत के संत फकीर,
जय भारत रहें सदा,कन्याकुमारी से लेकर तक कश्मीर,
जय भारत के चौकने सैनिक, जय भारत के वन-विराम,
जय भारत का अरुणाचल हिमालय और मुंबई से आसाम...
====जय भारत माता की ....जय हिंद .....
===सभी मित्रों को भारत के स्वतंत्रता दिवस की शुभकामनाएं ....

मैं अभिशप्त नहीं हूँ

मेरी देह पर उनके रेंगते हुए हाथ,
आज भी भय से सिरहन दौड़ जाती,
कितनी बार उठ बैठती हूँ मैं रात रात,
और वो वीभत्स हंसी ठहाके सुनाई देते,
वो पीड़ा का अहसास मेरे भीतर जागता,
और शरीर के दर्द से ज्यादा मन में पीड़ा,
रोष भी शायद अब अश्रु बन के निकलता,
कुछ कहना चाहती हूँ मैं चीख चीख कर,
इस खोखले समाज के निर्जीव जीवों से,
किन्तु यह क्रंदन तो तब कर चुकी थी मैं,
जब मेरी देह को रेत की तरह रोंदा गया,
अब तो केवल चिन्ह शेष बचे है घावों से ,
और मैं अभिशिप्त हो गयी हूँ बिना दोष के,
बलात्कार मेरी देह से नहीं हुआ था केवल,
संग मेरे भीतर की आत्मा को भी रोंदा गया,
और एक ख़ामोशी आकर अब बस गयी,
ना जाने कहाँ से मेरे भ्रमित अस्तित्व पर,
और मैं ढूंढ़ रही हूँ, अपनी खोयी अस्मिता को,
इधर उधर सब जगह, इस निरीह संसार में ,,,,,
==मन वकील

 

Saturday 13 August 2011

कुछ रेशम के धागे है जो बाँधते है , प्रेम का एक सच्चा नाता,
वो छोटी बहन या बड़ी दीदी के संग अविरल स्नेह को जगाता,
कलाई पर बंधकर जो ना जाने कैसे मन की गहराई को पाते,
जो व्यापारिकता से हटकर , भाई बहन के रिश्तों को सजाते,
जब वो दूर हो जाती तो कैसे मेरे नेत्रों से बहने लगती अश्रु धारा,
जिस बहन के संग खेला, कैसे भुला दूँ वो रिश्ता प्यारा हमारा,
आज फिर उसी रिश्तों को मज़बूत करने का फिर वो दिन है आया,
सदा नमन है उस देव तुल्य को जिसने रक्षा बंधन का दिन है बनाया......
======मन वकील
कुछ रेशम के धागे है जो बाँधते है , प्रेम का एक सच्चा नाता,
वो छोटी बहन या बड़ी दीदी के संग अविरल स्नेह को जगाता,
कलाई पर बंधकर जो ना जाने कैसे मन की गहराई को पाते,
जो व्यापारिकता से हटकर , भाई बहन के रिश्तों को सजाते,
जब वो दूर हो जाती तो कैसे मेरे नेत्रों से बहने लगती अश्रु धारा,
जिस बहन के संग खेला, कैसे भुला दूँ वो रिश्ता प्यारा हमारा,
आज फिर उसी रिश्तों को मज़बूत करने का फिर वो दिन है आया,
सदा नमन है उस देव तुली को जिसने रक्षा बंधन का दिन है बनाया......
======मन वकील

Thursday 11 August 2011

नहीं हूँ आकाश मैं, पर कुछ अंश उसका भी समेटे हूँ,
नहीं हूँ जल का अभिप्राय, पर कुछ अंजुली भी समेटे हूँ ,
वायु भी नहीं है तेज़ मैं, पर कुछ उड़ते भाव समेटे हूँ ,
धरा सा विशाल नहीं रहा मैं, पर कुछ कण भी समेटे हूँ,
ओज़स शायद भरा हो कुछ भीतर मेरे, जो प्रकाशित हूँ मैं, 
पावक में देह से राख बदल जाऊँगा, कुछ पञ्चभूत सा हूँ मैं , .......

Tuesday 9 August 2011

" कुछ शब्दों में समेटना चाहता हूँ मैं सारा नीला आकाश,
फिर भी ना जाने क्यूँ, पैरों तले जमीन खिसका जाती है ,
कभी चाहू अगर रोकना, बहते मन के भावों की नदी को,
फिर भी ना जाने कैसे, रेत सी हाथों से जिन्दगी फिसल जाती है" ......
" कुछ शब्दों में समेटना चाहता हूँ मैं सारा नीला आकाश,
फिर भी ना जाने क्यूँ, पैरों तले जमीन खिसका जाती है ,
कभी चाहू अगर रोकना, बहते मन के भावों के नदी को,
फिर भी ना जाने कैसे, रेत सी हाथों से जिन्दगी फिसल जाती है" ......

Sunday 7 August 2011

कब तक ना मानोगे, तुम उसके होने को,
बस कोसते रहोगे, जब असफल होने को,
क्यूँकर हर वसन से ढंके ना जाते है तन,
है वो हर और, फिर क्यूँकर भटकता मन,
नजारों में बसा है सभी, दिखाता सब वो रंग,
कोई पत्थर में खोजे, कोई सजदे का ले ढंग,
कोई दीये जलाकर मना ले, तो कोई लोबान, 
अरे वो देखता है हमको, बनके निगेहबान ...............
=====मन-वकील
समस्त बंधन मुक्त होकर ,
वो रहा उसके मोह में कैदी,
छुट गए सब नाते संगी,
पर उसको ना छोड़ पाया,
उसके प्रेम का वो तेज़ रंग
चढ़ गया उसकी आत्मा पर,
जिसने उसे जल अग्नि वायु,
आकाश से पराभूत करते हुए,
उसकी यादों से अनुभूति देकर,
स्मृतियों से युक्त जीव बना दिया......
======मन वकील

Saturday 6 August 2011

वहां बिदेसों में मनाते है सिर्फ एक दिन साल में अपनी दोस्ती के नाम,
बहुत मसरूफियत है वहां, सिर्फ दोस्तों के लिए बचती है एक ही शाम,
यहाँ मेरे देश में, हर दिन और  हर रात होती है सिर्फ यारों के ही नाम, 
यहाँ हर दिन हैं फ्रेंडशिप डे, मिल बैठ कर पीते है रोज़ दोस्ती के जाम .........

========दोस्ती जिंदाबाद.........
उससे स्नेह था या फिर मोह,
मैं चाहकर भी नहीं छोड़ पाया,
न जाने क्यों मुड़ मुड़ कर कदम,
फिर बढ आते उसी राह पर,
और नैन खोजते रहते यहाँ वहां,
उसकी वो मोहिनी मूरत को,
और बैचैन सा हो उठता था मैं,
सुध नहीं रहती अपने तर्कों की,
और वो सारे प्रण भुला बैठता,
मैं एकाएक ना जाने क्यूँकर,
अशांत मन अतृप्त काग सा,
और कोई औंस की बूंद भी,
नहीं मिलती किसी प्रेयसी से ,
फिर मैं नए प्रण लेता, हारकर,
केवल यही धूल पुनः छांटने को,
सोचता रहता सदैव, मैं मन में ,
 उससे स्नेह था या फिर मोह,
मैं चाहकर भी नहीं छोड़ पाया,
====मन-वकील