Sunday 25 September 2011

प्रिये बेटी दिवस पर समस्त फोरम सद्स्यायों का स्नेह सादर सहित अभिनन्दन :
वो कभी माँ है बेटी है और बहन भी है ,
वो प्रेमिका है वो संगिनी जीवन भी है,
वो कई कई रूप में मेरे सामने है अवतरित,
वो मुझे मुक्त करदे ऐसा पापदहन भी है,
कभी शक्ति स्वरूपा, कभी एक बरगद है,
वो जो जननी पालिता है उसे नमन भी है////

Saturday 24 September 2011

वो जो पेश करते है , अक्सर,
मेरे गीतों को अपने नाम देकर,
वो मेरे दोस्त थे साथ थे अकसर,
अब मुझे बेचते है इलज़ाम देकर.....
वो सिखाते रहे पल पल अक्सर,
चलाकियाँ,ज़माने का नाम लेकर,
अब तो सामने भौंकते,वो अक्सर,
वो जो हमारे पाले थे, रह रहकर,
मन-वकील, अब तो होता ये अक्सर,
आस्तीन में सांप से निकलते रहबर....

वो जो पेश करते है , अक्सर,
मेरे गीतों को अपने नाम देकर,
वो मेरे दोस्त थे साथ थे अकसर,
अब मुझे बेचते है इलज़ाम देकर.....
अब तो लगता है डर, हमें
अपने साए से भी अक्सर ,
क्या जाने किस मोड़ पर,
एक और मन वकील मिल जाए..


Friday 23 September 2011

श्री कृष्ण है जो भीतर मेरे एक विराट स्वरुप,
वर्षा ऋतु है और कभी जेठ माह की तीव्र धूप,
जो विरल है कभी तो कभी सरल और अनूप,
अभिव्यक्ति से है परे कभी,वो अनुपम एक रूप,
जल में है कभी वायु में, या धरा के है अनुरूप,
कण कण में वो बसा, जीवन मरण के प्रारूप,
बंसी की धुन में, और कभी मृदंग के ताल भूप,
गोपियों संग नाचे,और कभी जसोदा सो सहुप,
श्री कृष्ण है जो भीतर मेरे एक विराट स्वरुप,
रक्त बीज हो गया है अब
मन के विकारों का बोझ,
जितना भी वध मैं कर दूँ ,
बढ़ता कई गुना हर रोज,
शांत रहकर भी है अशांत,
जो व्याकुलता है बरसती,
नेत्रों अंगारों से अब लगते,
आत्मा जैसे हो अब तरसती,
क्या कहूँ ? मैं हूँ परिवर्तित
बन गया एक टूटा सरोज,
रक्त बीज हो गया है अब
मन के विकारों का बोझ....
===मन-वकील

Friday 9 September 2011

कालेज के उन दिनों में,
क्या दिल की हालत होती,
हम मदहोश हुए रहते,
और आँखों में शरारत होती,
नोटबुक पे लिखते थे, हम
सबक,जब संग कलम होती,
ब्लैकबोर्ड पर दिखती अक्सर,
तस्वीर, जो दिल में बसी होती,
नोट बुक पर तो उतरते थे सीधे,
अक्षर, पर याद में उनके बदल जाते,
क्या कहें हम अब दोस्तों वो दिन,
जब आखिरी पन्नों में उनका नाम दोहराते...
====मन-वकील

Monday 5 September 2011

मेरे नसीब में चाहे हो कांटे, पर मेरे यारों को,
फूलों की महफ़िल मस्तानी दे मेरे मौला,
भूख के नश्तर उन्हें चुभ ना पाए मेरे यारों को,
दावतें रंगी दस्तरखाने जमानी दे मेरे मौला,
झूठ फरेब के जाल अब छू ना पायें मेरे यारों के,
दिल में सच के रंग आसमानी दे मेरे मौला,
तरस गयी अब आँखे तेरे दीद को मेरे यारों की,
पत्थर से निकल दरस सुल्तानी दे मेरे मौला....

Sunday 4 September 2011

क्या हूँ ? और क्या बनूँगा मैं,
इस बात की नहीं परवाह मुझे,
कुछ सरल सी है मेरी जिन्दगी ,
जो दौड़ती है पथरीली राह पर,
चिंता कभी नहीं मुझे, भविष्य की ,
पर खा गया मुझे मेरा निवर्तमान,
खोये भूत में खोकर, अपना आज,
मैं रहता आया उदासी की छाँव में,
तरलता मन की उमंगों में रही बसी,
और मैं बहता रहा दूसरों की राहों में,
प्रेम कैसे करूँ मैं, ऐसे मीरा बनकर,
जो मिलते नहीं जो कृष्ण बांहों में,
सदैव रहा हूँ प्यासा एक चातक सा,
ढूंढ़ता हूँ मैं जिन्दगी, खोयी राहों में,
==मन-वकील