आज जब फिर से गुजरा,उस सड़क पर,
कई सालों बाद, जवानी के बीतते दौर में,
कुछ यादें झट से, समूचे मन में कौंध गयी,
वो सड़क नहीं बदली है आज भी वैसी ही,
जैसी पहले सी थी,मेरे कालेज के दिनों में,
वही गड्डे, वही बिखरे कंकर, उडती धूल,
कुछ नहीं बदला आज भी वैसा ही रहा है,
बदला है तो सिर्फ आस पास का माहौल,
वो अशोक के पेड़, जो ढांपे रहते थे इसे,
वो अब नहीं रहे, हाँ अब कंक्रीट के किनारे,
जो खा गए है उसके इर्दगिर्द की हरियाली,
संग में, कई नौजवानों के कुछ अरमान,
मुझे याद है आज भी, वो बीते हुए कल,
जब मैं अपनी प्रेयसी की बिठाकर पीछे,
अपने पापा के उस स्कूटर पर, उन दिनों,
जानबूझकर निकलता था उसी सड़क पर,
और अचानक गड्डे में उछलता मेरा स्कूटर,
और वो कसकर थाम लेती मुझे बाहों से ,
और उसके उभारों की नरमी बस कर देती,
मेरी भीतर के रक्त को इतना गर्म और मस्त,
वो दिखने लगता मेरे कानों के लवों पर रेंगता,
और मन होता बस चुम्बन अंकित करने को,
वो मुझे डांटती,पर शायद कुछ और सोचती ,
वो उसके बाद और करीब हो जाती थी मेरे,
सड़क से गुजर जाने के बाद भी लिपटे हुए,
वो दिन शायद जीवन के सबसे सुखद दिन,
आज मैं फिर से गुजरा फिर उस सड़क पर,
वही गड्डे, लेकिन प्रेयसी अब साथ बैठी है,
साथ बगल की सीट पर, अब मेरे पीछे नहीं,
उसके हाथ मुझे घेरे नहीं है , बल्कि अब तो,
वो थामे है उसके उस मोबाइल को कसकर,
जो उसे मुझसे प्यारा लगता है और शायद हाँ,
पल में वो पल याद आते है मुझको सड़क पर,
क्या वो पापा का स्कूटर, ज्यादा सुखदायी था,
या फिर, मेरी यह बड़ी आरामदायक सी गाडी,
जो मुझे कर रही है वंचित उस क्षणिक सुख से,
इस सोच में डूबा मैं, अब भूलने लगा एकाएक,
सडक के गड्डे पर सिमटे अपने पुराने पलों को ...
==मन -वकील