Tuesday 26 March 2013

सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
उड़े गगन में अबीर गुलाल, ऋतु राज भौराया,
             सरसर मारे पिचकारी, मेरो प्यारो नन्द गोपाल,
             आई होली रे,अरे आई होली रे,कैसो मस्त धमाल,
             मोरपंख  धरे सीस पर,कन्हाई मेरो गहरो कूद लगावे,
             जिस तिस देखे वो गोपिका,वाको भरभर रंग लगावे,
             नन्द के लाला करे रास,रंगआनंद चहु दिश ऐसो छाया 
             सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
इत उत दौड़े बाल गोपाल, हाथों में भर भर रंग गुलाल,
सांवरी छबि मन मोहे रही,प्यारो लगे मोहे जसोदा लाल,
माखन भयो गुलाबी अबहु, सुंगंधि देत रहो चन्दन सौ कैसी,
गैयाँ भी सजे रंग में, अरे गैया होय गुलाबी लगो कामधेनु जैसी,
होरी खेलत गोकुल को प्यारो नटराज, देखो कैसो खेल दिखाया,
सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
           छिप छिप रही सबहु गोपियाँ,रंग ना देहो कोहू और डार,
           मन में बसे श्याम,अबहु मोहे केवल आन रँगे नन्द कुमार,
          अरे करे प्रतीक्षा सबरी अँखियाँ, निहारे अपने हरि की राह,
          कब आओगे श्याम मोहु रंगने, पिया मिलन मोहे ऐसो चाह,
          गोप कुमारी होए रही अधीर, मधुमास ज्यो फाल्गुन में आया,
          सतरंगी रंगों में सजकर देखो फाल्गुन आया,
          उड़े गगन में अबीर गुलाल, ऋतु राज भौराया,
             =========मन वकील 

Saturday 23 March 2013

देसी कट्टों और चाकुओं से नहीं चलती इस मुल्क की हकुमत,
अब तो एके 47 वाले गुंडों डकैतों को तो बुलाओ यारों,
कातिल हो गया है इस देश का निज़ाम, अब तो होश में आओ यारो,

है वो चीज़ रोटी तो यहाँ पर,
लेकिन मिलती है वो अमीर के घर,
कूड़ें में बीनते है वो नन्हे हाथ गरीब के,
जो मिलती उन्हें गर,ले जाते कुत्ते छीनकर,
खोल बंद गोदामों को,कोई  सड़ता हुआ अनाज बँटवाओ यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो,

 ख़ुदकुशी करना अब बन गया किसान की मजबूरी,
 जो छीन लेती है बड़ी कम्पनियाँ उसकी मेहनत पूरी,
जो बचा है वो कब चला जाएगा बैंकों के क़र्ज़ में,
अब करनी पड़ती है उसे शहरों में जाकर मजदूरी,
उस किसान को उसकी फसल का असली हक़ दिलवाओं यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम अब तो होश में आओ यारो,

शहर से निकल पड़ता हूँ जब भी गाँव की ओर,
नजर नहीं आये मुझे अब कहीं भी खेतो की ठौर,
जमीनों पर बुलंद होती माल इमारतों की वो तकदीरें,
बढता जाता है घरघर वो ट्रकों डंपरों का गहरा शोर,
खा गये नेता बिल्डर माफिया जो खेती, वो जमीने खाली करवाओं यारो,
कातिल हो गया है इस देश का निजाम,अब तो होश में आओ यारो,  

वोट है तो झोंपड पट्टी में बँटती है दारु और नोट,
अब राजनीति भी है गुंडागर्दी,सिर्फ चलता है खोट,
धर्मनिरपेक्षता भी नंगी है किसी वेश्या के तन सी,
रौन्धते रोज़ नेता कर उसे बदनाम, पाते जो अल्पसंख्यक की वोट,
अब तो इस झूठे समाजवाद से निकाल,इस मुल्क को बचाओं यारों 
कातिल हो गया है इस देश का निजाम, अब तो होश में आओ यारो,

अब नहीं होती मुझसे लाठी और गुलेलों से कश्मीर की हिफाजत,
कितने पत्थर और गोलियाँ झेलता हूँ,नेताओं की जिद बनी आफत,
रात मैं जागता हूँ खड़े खड़े, नेता के दरवाजों पर देता फिरता हूँ पहरे,
फिर दिन की उजालों में, पत्थर फेंकते मुझपर वो ढंके से अनजाने चेहरे,
काट कर ले गये मेरी गर्दन वो वहशी पडोसी,उन्हें दावत पर तो ना बुलाओ यारो,
कातिल हो गया है इस देश  का निजाम, अब तो होश में आओ यारो ......

Sunday 17 March 2013

कभी सहज सी होती वो हवा बन,
कभी तेज़ आंधी विचलित हो मन,
प्रेयसी भी है वो भार्या भी,संग गुरु,
शब्दों की मशीनगन जब वो हो शुरू,
सीधी है व्यव्हार में, कहती सदा स्पष्ट,
अच्छी लगे उसकी बात कभी देती कष्ट,
मनमोहिनी भी है वो है संग गजगामिनी,
मेरे जीवन की सौंदर्या भी वो है कामिनी,
वो मेरे बच्चों की माँ,मेरे जीवन का आधार,
जन्म दिवस पर तुम्हे समर्पित प्रिये ,मेरा प्यार ....

===मन वकील 
   इतालियन जॉब 

 कहीं से आया था भारत के समुद्र पर,
वो इटली का जहाज, अनजाने सफ़र,
जैसे आया हो कोई भाई बहन के घर,
बहन अगर हो बड़ी नेता जो यहाँ इधर,
तो उसके भाइयों को फिर कैसा हो डर,
उनमे से दो नौसैनिक भाइयों ने हिम्मत दिखाई,
बन्दूक तान  दो गरीब मछुआरों पर गोली चलाई,
हुआ दो मासूम भारतीयों का दर्दनाक कत्ल,
इटली को क्या फिक्र जब बेटी निकलेगी हल,
हुए वो हत्यारे जब भारत में ऐसे गिरफ्तार,
जेल में नहीं, रेस्ट हाउस में हुआ उनका सत्कार,
फिर न्याय हुआ पंगु जब बहन ने  दिया दखल,
अँधा न्याय हाथ लगा खोजता रहा अपनी शक्ल,
इतालियन भाइयों के देश वापिसी का मिला आदेश,
झट से बैठे प्लेन में, पहुंचे वो हत्यारे अपने देश,
बहन के कहने से,मखौल बनी देशी न्याय पालिका,
अब तो मुल्क चलाती है जो, इतालियन बालिका,
वापिसी का वादा बना झूठा,जिसका नहीं जवाब,
इटली ने वो कर दिखाया, जिसे कहते है इतालियन जॉब ...
--मन वकील 

Wednesday 13 March 2013

साम्यवाद नहीं है यहाँ मित्रों, पूंजीवादी की बोलती है तूती,
सच्ची बात की होती निंदा,बिकती हर जगह झूठ की बूटी,
बस पीयो और रहो नशे में पाबन्द,सूखे में सब सब्ज़ देखते
जो मन में ही गहरे हो गड्डे, कही और क्यों पत्थर फेंकते,
धरातल है यहाँ टेड़ा मेडा,पर नहीं है वो कहीं भी कुछ समतल,
पैर पड़ते है मेरे यहाँ वहां,क़दमों में आ बसी गिरावट हर पल,
गिरावट चरित्र में भी दिखाई अब चहु ओर पसरी आती नजर,
कुछ लालच था छुपा मन में, जो अब बढ़ कर दिखाता असर,
अब फैशन में टेरीकॉट है या नाइलोन, नहीं बचा कुछ भी सूती,  
साम्यवाद नहीं है यहाँ मित्रों, पूंजीवादी की बोलती है तूती,
==मन-वकील 

Saturday 9 March 2013

 धमक धमक धरा धमक, निरत करत शिव प्रचंडतम,
 केश उड़त नभ गति,ललाट पहु स्वेद रिसत अखंडतम,
मृदंग बजत बहुताल,चरण धरे मुद्रा असंख्य सुशोभितम, 
वृषभराज होत मंत्र मुग्ध, बहे दौ नेत्र अश्रु रूप अनंततम,
जटा परिवर्तिता वेग रूपा,भागीरथी लियो रूप विशालतम,
शंशांक भवत असहज बाल,अलौकिक शिव गति अंतर्तम,
त्रिलोकपति नेत्र रक्तवर्ण होत,रुद्राक्ष मंडित भूलोक गर्जन्तम,
नमन करत सर्व  देव,मानव असुर, वन्दित शिव चर्चितम,
मनोहरी छटा अवतरित,अर्चना करे विश्व महादेव उत्तमतम ..........

==मन वकील की ओर से शिव रात्रि महा-पर्व की शुभकामनाएं   

Friday 8 March 2013

कभी नीले नभ सी विशाल है वो,
अपने आँचल में संसार समेटे हुए,
संतान को सीने से चिपकाए बैठी,
अंतहीन अनंता आदिशक्ति अवतारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,

कभी प्रेम बरसती जल-भरे बदरा सी,
सर्व रस निज में संजोती वो है धरा सी,
मनसा या तन्मय कभी, काम की फुहार,
रिझाती पुरुष प्रेयसी बन,कर वो श्रृंगार,
रति सी वो,आनंद दायिनी वो है  दुःखहारी,
 वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी, 

कभी चंचला सी वो, मृग सी करती विचरण,
कभी गौर गंभीरा बन,अवसादों में हो हनन,
भावों में घिरी घिरी, कभी हो जाती भाव मुक्त,
बुद्धि विचार शीलता भरी, शंतरंज के दाँव युक्त,
राजनीती से हो परे, करे कभी राजनीति वो भारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,

अतुल्य बलशालिनी कभी, कभी हो जाए निस्तेज,
क्षणिक हो शक्ति विहीन, उत्पन्न करे पुनः वो तेज़,
सहती समस्त दुःख अनाचार,तो ह्रदय में भरे शोक,
मुस्कराए जो वो खुल कर, मदमस्त हो जाए लोक,
पूजित होय मूर्त बन, प्रतक्ष्य हो सहे पीड़ा वो सारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,
 
इस धरा पर नवजीवन का सार  वो, सर्व आधार वो, 
मानवता की खोज वो,विकास वो,है शक्ति की धार वो,
देवतुल्य जन्मिता,धरा पर देवागमन का आधार वो,
सीता भी वो, लक्ष्मी और उमा सरस्वती का अवतार वो,
देव दृष्टि भी वो, श्रृष्टि भी स्वयं,पुनः मुक्ति सी समसारी,
वो है कुदरत स्वयं में, वो इक नारी,

====विश्व नारी दिवस पर बधाई सहित ...मन वकील  

Tuesday 5 March 2013

कहाँ रहे अब ये सीरियल पहले जैसे खूबसूरत,
कहाँ रही उनमे वो पहले जैसी वो निराली बात,
अब वही त्रिकोण प्रेम कहानी में नाचती बारात ,
वही साजिशें वही नफरतों के उमड़े से जज्बात,
वही प्रेमिका का उघडा बदन, नशीली होती रात,
रुकी सी कहानी, कछुए सी चलती बेवजह बेबात,
कभी हीरो मर कर जी उठे, दिखाए अपनी जात,
कभी हीरोइन आदर्श में लिपटी, देती सीता को मात ....