Saturday 27 July 2013


प्रेम ना जाने नियम की बाटी, प्रेम उन्मुक्त भावों की घाटी,
प्रेम माँ का बालक से अनुराग, प्रेम अपनों के लिए त्याग,
प्रेम चतुर छले पलपल मोहे,प्रेम बसे ग्रंथो में कबीर के दोहे,
प्रेम माया जाल कभी तीर साचा,प्रेम खटास ज्यो फ़ल काचा,
प्रेम होय मैं नभ में उडता खग,प्रेम संयम बुरे ना होय जग,
प्रेम बने प्रेरणा करूँ निज सुधार,जो होय वासना तो दूँ विसार ....
==मन वकील  

Thursday 25 July 2013

एक फैसला आज हुआ,शहीदी भारत की इस खूनी माटी पर,
शहीद महेश शर्मा गया होगा आज स्वर्ग की अमर घाटी पर
दहशतगर्दों के मसीहा अब नजर मिला,कहाँ छुपाता अब मुहँ,
तब तेरी अम्मा भी घडियाली थी रोती, साथ में रोता था जो तू,
वोट बैंक की भूख में करता रहा, बस आतंकियों की पैरवी तू,
उनके तलवे चाटे जाए, जैसे कागा खाता रहे सड़क में पड़ा गूं,
भूल गया तू भारत माँ को,बेच रहा पल पल सडा हुआ जमीर,
तेरे माई बाप की गलतियों से, खो बैठे है हम अपना कश्मीर,
"हिन्दू" शब्द को तू मानता गाली, सुधर जा अब तो ऐ जयचंद,
कब तक जजिया भरेगी जनता, देश हो जाएगा ऐसे खंड खंड,
अब लगता तुझे सबक सिखाने, तेल लगाना होगा अपनी लाठी पर   
 एक फैसला आज हुआ,शहीदी भारत की इस खूनी माटी पर,
शहीद महेश शर्मा गया होगा आज स्वर्ग की अमर घाटी पर ....
---मन वकील 

Sunday 21 July 2013

वो रखता है अपने ज़मीर को अब जेब में अक्सर,
मौके पर कभी कभार निकाल देख लेता उसका हाल,
दिल से दूर कर दिया जो ज़मीर को यूँ उसने अपने,
बस भरता है अब तिजोरी, हो गया जो वो मालामाल 
चंद दाग जो मेरी शख्सियत पर है उभरे,
वो मेरे आज को करते रहते यूँ दागदार,
मैं अनजान बना रहता खुद से ही अक्सर,
मेरा साया ही बन बैठा अब मेरा राज़दार 

Wednesday 17 July 2013



कहे क्या किस से मन वकील, अब हर ओर ही है बंदिशें,
कभी अल्फाज़  है फिसलते, कही खड़ी हो जाती है रंजिशें,
दोस्त कहे भी तो कहे किसको,हर कहीं है रूठने का डर,
कोई छीन ले मेरी जुबाँ,यूँ फिसल जाती कमबख्त  अक्सर 
==मन वकील 

Wednesday 10 July 2013


गौरी तोहे भाये सबहु रास रंग, 
काहे करहु तू पीया अपने तंग,
कबहु लगाये माथे पहु बिंदिया,
देख-२ उडत वाको मुई निंदिया,
मुग्ध करे नित निज "सुनील" 
नैनं कजरारे लगे ज्यो छबील,
गजगामिनी मोहिनी जैसे सुधा,
बसे अंक सुनील, जो ब्रह्म वसुधा 

Saturday 6 July 2013

कचहरी

कचहरी के दर पर आकर हुआ मुझे ये मालूम,
लोग किस कदर घर में फ़साद किया है करते,
उसको रुलाते है कटघरे में,पल पल देकर ताना,
अब रंजिशे रखे है उससे, जिसपे वो कभी है मरते ....
==मन वकील 

Monday 1 July 2013

बचपन

बचपन की बातें, वो स्कूल में की हुई बातें,
मास्टरजी की डांट, छिपाछिपी की वो रातें,
प्लेग्राउंड में बैठ वो दोस्तों के साथ किये लंच,
वो क्लास में बिछे डेस्क,ऑडिटोरियम में मंच,
तुनक में हम यूँ रूठें, कभी बेलगाम यूँ हँसना,
कभी शरारतों में उलझे,वो पनिशमेंट में फंसना,
माँ का वो लाड ऐसा, कभी माँ की मीठी झिडकी,
कभी बंद हुए यूँ दरवाज़े, कभी खुली कोई खिड़की,
अभी सब पास मेरे था, ना जाने अब कहाँ खो गया,
चन्द रातें क्या बीती,बस मेरा बचपन कहीं खो गया ..
==मन वकील