था मैं भी खाविंद किसी और से बंधा,
थी वो भी ज़ीनत किसी के चमन की,
ना जाने कैसे अचानक वो दौर चला,
बिजली कडकी हुई बारिश शबनम की,
सब्र का दरिया बह निकला किनारों से,
कुछ ज़ज्बात भडके दोनों के इशारों से,
लिपट गये हम ऐसे,जुदा ना होंगे कभी,
होंठों से होंठ मिले,मय छलकी थी तभी,
बेपर्दा हुए हम यूँ ऐसे,इकदूजे से मिल,
होश काफूर हुआ, बस धडकता था दिल,
रात लम्बी ,पर सेज का छोटा सा कोना,
मसले गये कई जिक्र, किस को था रोना,
सफर तमाम हुआ उस मोड़ पे यूँ आकर,
किसी से वादा तोड़ बैठे हम दूसरी पाकर
====मन वकील
थी वो भी ज़ीनत किसी के चमन की,
ना जाने कैसे अचानक वो दौर चला,
बिजली कडकी हुई बारिश शबनम की,
सब्र का दरिया बह निकला किनारों से,
कुछ ज़ज्बात भडके दोनों के इशारों से,
लिपट गये हम ऐसे,जुदा ना होंगे कभी,
होंठों से होंठ मिले,मय छलकी थी तभी,
बेपर्दा हुए हम यूँ ऐसे,इकदूजे से मिल,
होश काफूर हुआ, बस धडकता था दिल,
रात लम्बी ,पर सेज का छोटा सा कोना,
मसले गये कई जिक्र, किस को था रोना,
सफर तमाम हुआ उस मोड़ पे यूँ आकर,
किसी से वादा तोड़ बैठे हम दूसरी पाकर
====मन वकील