Monday 27 August 2012

था मैं भी खाविंद किसी और से बंधा,
थी वो भी ज़ीनत किसी के चमन की,
ना जाने कैसे अचानक वो दौर चला,
बिजली कडकी हुई बारिश शबनम की,
सब्र का दरिया बह निकला किनारों से,
कुछ ज़ज्बात भडके दोनों के इशारों से,
लिपट गये हम ऐसे,जुदा ना होंगे कभी,
होंठों से होंठ मिले,मय छलकी थी तभी,
बेपर्दा हुए हम यूँ ऐसे,इकदूजे से मिल,
होश काफूर हुआ, बस धडकता था दिल,
रात लम्बी ,पर सेज का छोटा सा कोना,
मसले गये कई जिक्र, किस को था रोना,
सफर तमाम हुआ उस मोड़ पे यूँ आकर,
किसी से वादा तोड़ बैठे हम दूसरी पाकर
====मन वकील 
 

Wednesday 22 August 2012

वो मास्टर जी की खरखरी आवाज का ही जोर,
कानों में गूंजा करता  था बस समंदर का वो शोर,
कहाँ मन था और कहाँ याद ज्योमिती के इशारे,
बैठते थे जब हम क्लास में खिड़की के किनारे,
खुले आसमान में देख वो उड़ते परिंदों की फौज,
बस यूहीं सोचा करते थे,इन जैसे करते हम मौज,
कहाँ भटके,जब बाँधे थी डेस्क की वो छोटी शहतीरे
कापियों के पन्नों पर बना चंद आड़ी तिरछी लकीरे,
चलता था मन में तब किट्टू से मिलने का ही जोर,
तभी रह गये हम पीछे, बन पढ़ाई में ऐसे कमज़ोर,
वो मास्टर जी की खरखरी आवाज का ही जोर,
कानों में गूंजा करता था बस समंदर का वो शोर,
==मन वकील

Saturday 18 August 2012

सीबीआई,भाई सीबीआई,

अरे देखो सीबीआई,भाई सीबीआई,
कैसी सरकारी जांच एजेंसी है भाई,
कामनवेल्थ खेलो में हुई लूट खसोट,
मंत्री से लेकर संत्री तक बनाये नोट,
हर महकमे के अफसर हुआ निहाल,
जनता को किया, महंगाई से बेहाल,
अरे पेड़ काटे,दिल्ली में जंगल कांटे,
मंत्रिओं और बाबुओ में लेपटोप बांटे,
७८,००० करोड़ की खाई सबने मलाई,
पर किसी मंत्री को आंच तक न आई,
कैसी सरकार ने निराली प्रथा चलाई,
अरे देखो सीबीआई,भाई सीबीआई,
कैसी सरकारी जांच एजेंसी है भाई,
हुआ जमकर सरकारी खेल घोटाला,
भारत की हुई थू थू ,संग मुहँ काला,
जब केग रिपोर्टों ने खोली सब पोल,
मीडिया ने भी पीटा रोज़ इनका ढोल,
सरकारी लीपापोती का रचा प्रपंच,
कोर्ट लगने लगी थी नाटक का मंच,
पहले किये छुटभैय्ये बाबू गिरफ्तार,
शोर मचाये जनता, तो हिली सरकार,
फिर मिलकर ऐसी सरकारी स्कीम बनाई,
जनता का मुहँ बंद,अनोखी सी जांच बिठाई,
अरे देखो सीबीआई,भाई सीबीआई,
कैसी सरकारी जांच एजेंसी है भाई,
कलमाड़ी पकड़ा,भेजा उसे तिहाड़ जेल,
सरकार ने खुलकर खेला,मक्कारी का खेल,
अरे जेल कहाँ थी, कलमाड़ी को आराम था,
जेलर के कमरे से कमेटी चलाना ही काम था,
कलमाड़ी साब ने छ: महीने खूब किये मजे,
तिहार में अब उठते थे रोज़ सोकर वो ९ बजे,
मिली जमानत फिर, सरकारी जुगत भिड़ाई,
चार्ज शीट से नाम हटा,है जो सरकार अपनी भाई,
अरे देखो सीबीआई,भाई सीबीआई,
कैसी सरकारी जांच एजेंसी है भाई,
=========मन वकील

Wednesday 15 August 2012

उठो मन मोहन, जो सूरज चढ़ आया नभ पर,
कैसो चहल पहल है छाई अब इस धरती पर,
सोये पंछी अब लौटे, हमरे आँगन करे पुकार,
बछिया नाच नाच है रंभाती,गैय्या रही निहार,
जागे सरोवर और नदिया,खेत जोहे है किसान,
धरा मृदल होय रही,हर्षित होय खेत खलिहान,
माखन बिलोय रही गोपियाँ, सुर निकले सरसर,
उठो मन मोहन, जो सूरज चढ़ आया नभ पर,
श्याम सांवरे सबहु अपनों प्यारो मुख दिखलायो,
मोर मुकुट शीश धर,मधुर बांसुरी तान सुनाओ,
द्वार पर अब खड़े ग्वाल, करत रहे एको पुकार,
दरश दियो हमरे कृष्ण गोपाल,प्यारे नन्द कुमार,
जमुना देखे प्रतीक्षा,तीरे बट झुक करत समर,     
उठो मन मोहन, जो सूरज चढ़ आया नभ पर,
==मन वकील
समेटने में बीत जाते है अब अक्सर,
दिन मेरे, कुछ टूटी यादों को यूँ ऐसे,
मन के आंगन में बिखरे हुए पड़े जो,
यहाँ वहाँ,चुभते मुझको नश्तर जैसे,
कांच के सपने थे या फिर कोई हवा,
कुछ यूँ टूटे मिले, कुछ उड़ गये कैसे,
समेटने में बीत जाते है अब अक्सर,
दिन मेरे, कुछ टूटी यादों को यूँ ऐसे,
खामोशियों की गर सुनता मैं आवाज़,
हाथ में ले पत्थर तोड़ता उनको वैसे,
क्यूँकर आकर बसते मेरी पलकों में,
जब ना थे वो नमकीन आँसुओं जैसे,
समेटने में बीत जाते है अब अक्सर,
दिन मेरे, कुछ टूटी यादों को यूँ ऐसे,
मन के आंगन में बिखरे हुए पड़े जो,
यहाँ वहाँ,चुभते मुझको नश्तर जैसे,
कुछ तितली बन आये थे मेरे चमन,
कुछ करते रैनबसेरा,परिंदों के जैसे,
घूम घूम देते पल पल कई खुशियाँ,
कहाँ खो गये,ढूंढता हूँ पागलों जैसे,
समेटने में बीत जाते है अब अक्सर,
दिन मेरे, कुछ टूटी यादों को यूँ ऐसे,
मन के आंगन में बिखरे हुए पड़े जो,
यहाँ वहाँ,चुभते मुझको नश्तर जैसे,
  ====मन वकील
  

Friday 10 August 2012

शब्दों से परे वो अद्बुद्ध छवि धरे वो, 
पीताम्बर नीलाम्बर आभा धरे वो,
मुग्ध करता वो श्याम सलोना रूप,
रास लीला करत तब नृत करे भूप,
माखन खाए,कहलाय मदनगोपाल,
गोपी संग रास राचावे मेरे नंदलाल,
वृन्दावन के दुलारे है कृष्ण गोपाल,
देविकी के जाय,जसोदा के वो लाल,
नैनों में बसे ज्यो ही वाको मैं निहारूं,
दूर जाय कभी तो पल पल मैं पुकारूं,
कर्मयोगी वो प्रभु सोलह कला ज्ञाता,
गीता रचियता है वो बलदाऊं के भ्राता,
रंग बसे बने नवरंग,ऐसो मेरो कन्हाई,
राधाप्रिये,रुक्मणी देयो पिया की दुहाई,
करुणानिधान,कंसहन्ता वो जगदीश,
नमन करूँ पुनि पुनि, ऐसो है वो ईश,
शुभ वेला में गोपियाँ गावत रही बधाई,
नाचो गाओ पावन कृष्ण जन्माष्टमी आई
===मन वकील

Saturday 4 August 2012

कोने में गठरी की तरह,
पड़ी पड़ी वो काबलियत,
सिसक सिसक कर रोती,
आंसुओं से अधिक है अब,
चीखों का मौन होता शोर,
जो दबकर होने को हैं अब,
कमज़ोर और बेअसर ऐसे,
देख रही है अँधेरा कालिख,
गुमनामियत जो छप गयी,
क़ाबलियत के चेहरे पर जैसे,
और दूर वहां इक कुर्सी है,
जहाँ अब काबिज़ हो गयी,
सिफारिश,इल्म से हटी हुई,
पर किसी ख़त से की गयी,
किसी नेता या मंत्री के हाथों,
उसके लैटरहेड पर तारीफ़ बन,
जहाँ एक और है छापा हुआ,
सत्यमेव जयते, अशोक लाट,
सचमुच आज के दौर का सच,
यही है, सिफारिश एव जयते,
तभी तो सिफारिश ठहाके मर,
मुहँ चिढाती हुई नज़र आती,
यहाँ वहां,हर सरकारी दौर में,
जहाँ क़ाबलियत का वज़न अब,
दिन पर दिन घटता ही जाता,
और सिफारिश वजनी बन कर,
हर कुर्सी पर बैठ किस्मत बनाती,
और गांधीजी अब चुपचाप ऐसे,
झांकते रहते मुस्कराते हुए जैसे,
अपने फोटोफ्रेम में बस टंगे टंगे,
सत्यमेव जयते सत्यमेव जयते,
क़ाबलियत जाए गड्डे में धडाम,
सिफारिश रहे चहु ओर वासयते..........
=मन वकील

Wednesday 1 August 2012

उन रंग बिरंगे धागों ने जब मेरी कलाई को है थामा,
स्नेह मिला भावों से,मन ने पहना दायित्व का जामा,
माथे पर सिंदूरी तिलक,अक्षत के संग पहचान बना,
उसके ससुराल जाने पर था,वो दुःख अब अन्जान बना,
मुहं में रखी मिठाई से भी मीठे लगे,वो बहना के बोल,
"राखी" के बंधन ऐसे बंधे,रिश्तें भाई बहन के है अनमोल ....................