ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
तुमको निशदिन पूजत तुमरी ननदों का भैया,
चाहे लव मेरिज से आओ,या घरवालों के कहने,
तुम कब्ज़ा ही लेती अपनी माँ और सास के गहने,
तुम से ही घर की शोभा सब घर में तुमसे डरते,
मुझ नर की क्या हिम्मत माँ बापू भी तुमसे डरते,
कब तुम भेजो दुखसागर में,अपने ही निरीह सैया
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
तुम जब खुश होती,तब घर में भोग पकवान मिले,
जब तुम होती रुष्ट,तो पति के लंगोट तक होते गीले,
तुम से कोई पार ना पाए, तुम हो घर में पति त्राता,
त्राहि माम करकर,नर आगे तुमरे अपनी पूँछ हिलाता,
देवर में सब दोष निकालो, भाये सदा अपना ही भैया,
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
तुम घर की महरानी, पर घर में महराजा कौन बने
एकछत्र राज्य चलाती, तुमरे रोब के आगे कौन तने,
पति कमाए जितना भी, तुम सब ही अपने पास रखती,
जो कुछ माँ को देवे, क्रोध से भस्म क्र देती उसकी माँ-भक्ति
घर में सब तुमसे चलता,ज्यो चले काल का बड़ा पहिया
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
जो नर अपनी भार्या के आगे, नित नतमस्तक होता,
रात्रि आनंद भोगता, चैन से अपने कमरे में ही सोता,
जो नर बने दबंगा, कर देती भरे बाज़ार उसे वो नंगा,
चाहे तन पर हो कपडे, पर तमाशा बने भीड़ में बेढंगा,
सपरिवार कोर्ट के फेरे लगाता, जेब से निकले जाए रुपैया
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
====नमन है वन्दनीय भार्या को ............
तुमको निशदिन पूजत तुमरी ननदों का भैया,
चाहे लव मेरिज से आओ,या घरवालों के कहने,
तुम कब्ज़ा ही लेती अपनी माँ और सास के गहने,
तुम से ही घर की शोभा सब घर में तुमसे डरते,
मुझ नर की क्या हिम्मत माँ बापू भी तुमसे डरते,
कब तुम भेजो दुखसागर में,अपने ही निरीह सैया
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
तुम जब खुश होती,तब घर में भोग पकवान मिले,
जब तुम होती रुष्ट,तो पति के लंगोट तक होते गीले,
तुम से कोई पार ना पाए, तुम हो घर में पति त्राता,
त्राहि माम करकर,नर आगे तुमरे अपनी पूँछ हिलाता,
देवर में सब दोष निकालो, भाये सदा अपना ही भैया,
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
तुम घर की महरानी, पर घर में महराजा कौन बने
एकछत्र राज्य चलाती, तुमरे रोब के आगे कौन तने,
पति कमाए जितना भी, तुम सब ही अपने पास रखती,
जो कुछ माँ को देवे, क्रोध से भस्म क्र देती उसकी माँ-भक्ति
घर में सब तुमसे चलता,ज्यो चले काल का बड़ा पहिया
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
जो नर अपनी भार्या के आगे, नित नतमस्तक होता,
रात्रि आनंद भोगता, चैन से अपने कमरे में ही सोता,
जो नर बने दबंगा, कर देती भरे बाज़ार उसे वो नंगा,
चाहे तन पर हो कपडे, पर तमाशा बने भीड़ में बेढंगा,
सपरिवार कोर्ट के फेरे लगाता, जेब से निकले जाए रुपैया
ओम जय पत्नी दैया ओम जय देवी पत्नी हईया,
====नमन है वन्दनीय भार्या को ............