Sunday 28 April 2013

                 गूंगा अब बेशर्म बन गया है।

  कई साल पहले, एक बड़े देश के सिंहासन पर,
  बैठा दिया नेताओं की जुन्डली ने ऐसे मिलकर,
  इक गूंगे को, कुछ जुगत भिड़ा, कुछ सोचकर,
  जो बस मुहँ ना खोले, चुप रहे वो सब देखकर,
              गूंगे के होते घोटालों का ऐसा अनोखा दौर चला,
              देश में यहाँ वहाँ बस भ्रष्टाचार का ही जोर चला,
              किसी मद में,कही भी,हर राह पर नेता ही फला,
              सरकारी खातों की छाया में,नेता का ही पेट पला,
कभी कोयला खाया, कभी खेलों के नाम पर खाया,
कहीं हेलिकोप्टर मंगाए, कही छाई टूजी की माया,
मनरेगा की लूटी फसल,जो नेताजी ने खूब कमाया,
भारत निर्माण के नाम पर, देश में अँधेरा ही फैलाया,
             सीमा पर जवानों के सिर कटे,खून से भारत सन गया,
             नारी पर हुई हिंसा,आक्रोश प्रदर्शन में सर्व जन गया,
             आ बैठा चीन भारत में, अब लद्दाख में तम्बू तन गया,
             और वो जो गूंगा है नेता गद्दी पर, अब बेशर्म बन गया ............
==मन वकील 

Thursday 25 April 2013

धरा हरी हरी सी, फैले हो चारों ओर वन,
रहेंगे सभी जन स्वस्थ,हसंता रहेगा मन,
ना होगा पर्यावरण दूषित,ना दूषित वायु,
सभी जन हो चिरंजीव, कम ना हो आयु,
बच्चें खेले कूदे,बलवान बने उनका तन,  
धरा हरी हरी सी, फैले हो चारों ओर वन,
चिड़ियों का कलरव,तितलियाँ करे निरत,
आनंदित होय नभ,मरू भूमि होय विरत,
परबत से बहे नदियाँ,ध्वनि करें कल-कल,
कोई खेत ना हो बंजर,कृषक ना हो विकल,
पर्व रंगों के हो इत उत,प्रमोद करे सर्वजन,
धरा हरी हरी सी, फैले हो चारों ओर वन,
==मन वकील   

Sunday 21 April 2013

                

                                 " माँ "


         कोई कहता है वो धरा पर ईश्वर का रूप 
         कोई कहता है वो जीवन-दायनी स्वरुप,
        सबसे अनोखी वो छाँव,होगी ऐसी कहाँ,
         मेरे लिए तो है वो सबसे प्यारी मेरी माँ 
              जब भी तपता मैं ज्वर में किसी भी रात,
             मेरे सिरहाने बैठ माथा सहलाते उसके हाथ,
             मेरी पीड़ा को पहचानती वो है मेरा जहाँ,
             मेरे लिए तो है वो सबसे प्यारी मेरी माँ 
      मैं कभी भूखा सो जाऊं, वो होने न देती,
      मेरे लिए वो खुद अपनी नींद भुला देती,
      मेरी प्रथम गुरु,मार्गदर्शिका ऐसी हो कहाँ,
       मेरे लिए तो है वो सबसे प्यारी मेरी माँ ///
===मन वकील 
              
    

                                      "मित्र"


  दो अक्षरों में ना हो सकता परिभाषित,
  केवल एक मात्रा में न सीमित संसार ,
  वो मेरे दुःख सुख सब सुनता पिरोता, 
  वो "मित्र" मेरे जीवन का है एक आधार,
          संकट हो जब भी, कोई छुपकर कभी आता,
          वो "मित्र" आगे आकर मेरी ढाल बन जाता,
          अनुचित से मुझे सदैव बचाकर ऐसे रखता,
          जीवन में भरने लगता मेरे भीतर सदाचार,
 हँसी ख़ुशी में मेरी पल पल वो हो शामिल,
 आनंद प्रमोद के रंगों से बना मुझे काबिल,
 मेरे निर्णय क्रिया कलापों पर रखता नज़र,
 वो "मित्र" ना केवल साथी, बल्कि सलाहकार,
 वो मित्र मेरे जीवन का है एक आधार 
        ===मन-वकील 

Saturday 20 April 2013

सर्द है वो आहटें, जो अचानक दस्तक देती,
वो नन्ही ठिठक कर,सहम सी जाती ऐसे,
कहीं हैवानियत बदल अपना रूप यूँ आती,
अंकल हाथों में टाफी लिए आये कभी जैसे,
नन्ही के मासूम चेहरे पर रेंगते वो दो हाथ,
किसी कालिख मल रहे हो रगड़ कर जैसे,
वो आँखों में छुपी उस अंकल के, वो वासना,
किसी दरिन्दिगी के आगाज़ की पहचान जैसे,
उस नन्ही के शरीर पर वो बनते हुए ज़ख्म,
चीख चीख कर दुहाई देते इंसानियत की, जैसे,
मैं बाप हूँ उस नन्ही का,जो जुल्म सह आई इतना,
बोलो ऐ दुनिया, अब जी पाऊंगा मैं तुझमे कैसे? 
==मन वकील के मन की आवाज़