Sunday 11 May 2014



आँखें खोल कर मैं अब भी वैसे ही हूँ रोता,
देख तो मुझे मेरी माँ', मैं आज भी हूँ छोटा,

तेरे हाथ मेरे गालों को अब भी है सहलाते,
ना जाने कब हम यूँ, ऐसे ही बड़ें हो जाते,
भीड़ होती अक्सर मेरे इर्द गिर्द, घेरे मुझे 
पर उस भीड़ मे, मैं अकेला ही खड़ा होता,
आँखें खोल कर मैं अब भी वैसे ही हूँ रोता, 

कैसे भागती थी तुम लेकर हाथोँ मे निवाला,
मैं आगे आगे भागता, जैसे बन मे गोपाला,
मुझे खिलाने के लिये भुला देती अपनी भूख,
मेरे पास अब यूँ खाने का वक्त कहाँ है होता,
आँखें खोल कर मैं अब भी वैसे ही हूँ रोता,
देख तो मुझे मेरी माँ', मैं आज भी हूँ छोटा,

हर अहसास से अधिकतर वो अनोखा दुलार,
माँ, तुझसे बढ़कर कौन करता मुझसे प्यार,
मेरी गलतियों को भूल लगा लेतीं मुझे गले,
कौन मेरे कीचड़ से सने पैर अपनें हाथोँ से धोता,
आँखें खोल कर मैं अब भी वैसे ही हूँ रोता, 

आँखें खोल कर मैं अब भी वैसे ही हूँ रोता,
देख तो मुझे मेरी माँ', मैं आज भी हूँ छोटा,
=मन वकील 


No comments:

Post a Comment