Saturday 22 March 2014


कलम लेकर बैठा हूँ मैं आज फिर कुछ लिखने,
शून्य है दिमाग,भाव ह्रदय में उमड़ उमड़ से रहे,
अक्षरोँ की चींटियाँ ना जाने कहाँ से लगी काटने,
शब्द न जाने क्यों? मन के कोने में झग़ड से रहे,

क्या लिखूं मैं ?अपने पिता का आकस्मिक स्वर्गवास   
या लिखूं मैं,स्वयं का क्रंदन या माँ की हालत बदहवास,
पुनः पुनः जागती रिक्तता, अश्रु बदरा बन उमड़ से रहे  
शब्द न जाने क्यों? मन के कोने में झग़ड से रहे,

जीवन है फिर से लगेगा चलने,मान निज को अमित,
भुला देगा वो मृत्य़ु सत्य,बन अविरल गतिशील फलित,
स्मृतियों में होंगे स्थिर,अब जो स्वप्न बन उमड़ से रहे 
शब्द न जाने क्यों? मन के कोने में झग़ड से रहे,

==मन वकील 

No comments:

Post a Comment