Thursday 17 April 2014

          
 परन्तु जवाब में भारतीय पुरुष कहता है :-

तुम केवल देह तक ही क्यों सिमटी हो प्रिये। 
जब इस देह में अब आत्मा तुम्हारे नाम की। 

देह पर पीत हल्दी से अधिक गहरी गाढ़ी बहती,
मेरे देह में रुधिर के रक्तिमा लाली तेरे नाम की 

तुम तो मेहंदी रचा हाथों में मुझे याद करती हो प्रिये 
मेरे रुधिर के कण में रची बसी स्मृति तेरे नाम की ।

चुनरी ओढ़  कर जो रूप तुम दिखलाती हो प्रिये 
उसकी ओट में बसी धड़कन ह्रदय में तेरे नाम की ।

मांग में सिन्दूर है रचाया तुमने गहरा सा, प्रिये,
उनकी लालिमा बसी मेरे नेत्रों में तेरे नाम की 

यदि कभी किसी भी पल तुमसे जो होता दूर, प्रिये 
घर वापिस लाने को उद्धत करती, प्रेम भावना तेरे नाम की। … 

== मन वकील 

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