रुके हुए शब्दों को कौंच कौंच कर बाहर निकलना,
अँधेरे से घिरे मन के कोनों से,टोहकर बाहर खींचना,
सचमुच बहुत मुश्किल होता है मित्रों बहुत ही मुश्किल,
कम्बख्त भावों के लबादें औड़ कर चुपचाप बैठ जातें,
और आँसुओं की खुराक खुद को चुपचाप सींचते जातें,
कभी कभी पुरानी स्मृतियोँ से गूँगे हो बतियाते रहते,
बीते पलों की रंग बिरंगी या काली स्याही उड़ेलते रहते,
और मैं मन वकील, कलम हाथों में लिए सोचता रहता
कि इन रुके हुए शब्दों को कौंच कौंच कर बाहर निकलना,
सचमुच बहुत मुश्किल होता है मित्रों बहुत ही मुश्किल,
अँधेरे से घिरे मन के कोनों से,टोहकर बाहर खींचना,
सचमुच बहुत मुश्किल होता है मित्रों बहुत ही मुश्किल,
कम्बख्त भावों के लबादें औड़ कर चुपचाप बैठ जातें,
और आँसुओं की खुराक खुद को चुपचाप सींचते जातें,
कभी कभी पुरानी स्मृतियोँ से गूँगे हो बतियाते रहते,
बीते पलों की रंग बिरंगी या काली स्याही उड़ेलते रहते,
और मैं मन वकील, कलम हाथों में लिए सोचता रहता
कि इन रुके हुए शब्दों को कौंच कौंच कर बाहर निकलना,
सचमुच बहुत मुश्किल होता है मित्रों बहुत ही मुश्किल,
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